महज 15 गुंडी पानी के लिए रोज 60 किमी का पैदल सफर…… !
झरिया कुंए का गंदा पानी पीने के लिए मजबूर हो गए हैं आदिवासी =
= पीएचई द्वारा स्थापित जल मीनार की मोटर कई माह से पड़ी है खराब =
-अर्जुन झा –
बस्तर 02 May, (Swarnim Savera) । एक तरफ देश की आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने की खुशी में अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर एक गांव के पचासों आदिवासी परिवारों को दिनभर की जरूरत के मुताबिक 15 गुंडी पानी के इंतजाम के लिए रोजाना 60 किलोमीटर का फासला पैदल तय करना पड़ रहा है। इतना कष्ट उठाकर उन्हें झरिया कुंए के पानी से गुजारा करना पड़ता है। यहां के हर परिवार के सदस्यों को दिनभर में 60 किमी पैदल चलना पड़ता है, तब कहीं जाकर पूरे दिन के लायक पानी की व्यवस्था हो पाती है।
देश की आजादी का अमृत महोत्सव तब तक बेमानी है, जब तक कि देश के हर नागरिक को अमृततुल्य पानी, बेहतर चिकित्सा सुविधा, सड़क, बिजली, स्कूल आदि की सुविधा न मिल जाए। देश भले ही आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, लेकिन बस्तर जिले की जनपद पंचायत बस्तर में स्थित ग्राम पंचायत गोड़ियापाल के आश्रित ग्राम बंजारापारा टोला के पचासों आदिवासी परिवार अपनी बदकिस्मती का मातम मना रहे हैं। इन आदिवासियों के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था कर पाने में जिला प्रशासन नाकाम साबित हुआ है। जिला प्रशासन अंतिम व्यक्ति तक पानी, बिजली, चिकित्सा, शिक्षा आदि मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने का दावा करता है, लेकिन बंजारापारा में यह दावा पूरी तरह खोखला साबित हो रहा है। बंजारापारा गांव के लोगों को स्वच्छ एवं शुद्ध पेयजल नसीब नहीं हो पा रहा है। इस गांव में रहने वाले आदिवासी परिवारों के सदस्य आज भी झरिया पानी पीने को मजबूर हैं। ठंड के दिनों से ही इस बस्ती के लोग बूंद बूंद पानी के लिए तरसते आ रहे हैं। भीषण गर्मी के इस मौसम में मामला और भी बिगड़ गया है। इस मौसम में पानी की खपत और जरूरत काफी बढ़ जाती है। ग्राम बंजारापारा टोला के लोग इन दिनों पानी के संकट से जूझ रहे हैं। पेयजल आपूर्ति के लिए शासन प्रशासन द्वारा बंजारापारा में कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किया गया है। न हैंडपंप है, और कोई अन्य साधन। यहां के लोगों को अपने घरों की जरूरत के लिए पानी का इंतजाम करने दो किमी जाने और दो किमी आने के एक फेरे में चार किलोमीटर का फासला तय करना पड़ता है, तब भी उन्हें शुद्ध पानी नहीं मिल पाता। बस्ती से दो किमी दूर स्थित एक खेत में खोदे गए झरिया कुंए से बस्तीवासियों को पानी लाना पड़ रहा है। इस झरिया का पानी काफी गंदा है और उसे पेयजल के तौर पर इस्तेमाल करना सेहत के लिए खतरनाक है, मगर ग्रामीणों के सामने मरता, क्या न करता वाली बात है। लिहाजा उन्हें इसी गंदे पानी से गुजारा करना पड़ रहा। झरिया कुंए तक पहुंचने और वहां से पानी लेकर लौटने में कुल चार किमी दूरी तय करना पड़ती है। एकबार में महिलाएं व ग्रामीण महज एक गुंडी ही पानी ला पाते हैं और हर घर में रोज लगभग 15 गुंडी पानी की औसतन खपत होती है। इतने पानी के इंतजाम के लिए हर ग्रामीण को झरिया कुंआ के पंद्रह फेरे लगाने पड़ते हैं। यानि दिनभर में उन्हें कुल जमा 60 किलोमीटर का फासला पैदल तय करना पड़ता है। इस तरह पानी की व्यवस्था करने में है ग्रामीणों का पूरा दिन खप जाता है। नतीजतन वे रोजी मजदूरी तथा दूसरे कार्यों के लिए समय ही नहीं दे पाते।
बॉक्स
कई माह से खराब पड़ी है पंप की मोटर
ग्रामीणों ने बताया कि गांव में नल जल योजना के तहत पेयजल आपूर्ति के लिए जल मीनार बनाई गई गई है। इस जल मीनार में जो मोटर पंप लगाया गया है, वह सौर ऊर्जा से चलता है। जल मीनार के पंप की मोटर कई माह से बिगड़ी पड़ी है और ग्रामीणों को जल मीनार का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। समस्या को लेकर ग्राम के वार्ड पंच कमलचंद चौहान व बमबती चौहान, धनसू राम, शिव नायक एवं अन्य ग्रामीणों ने बताया कि जल मीनार की मोटर दो महीने से खराब पड़ी है। इसकी सूचना जनप्रतिनिधियों एवं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों को काफी पहले से दी जा चुकी है, लेकिन मोटर को बनाने का प्रयास नहीं किया जा रहा है। विभाग के अधिकारी ग्रामीणों को शुद्ध पानी उपलब्ध कराने के बजाय सिर्फ आश्वासन की घुट्टी ही पिलाते आ रहे हैं।
वर्सन
तुरंत कराएंगे व्यवस्था
अभी मुझे यहां आए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, लिहाजा गांव की समस्या की जानकारी मुझे नहीं है। अधिकारी कर्मचारियों को गांव भेजकर चेक करवाऊंगा और ग्रामीणों की समस्या तुरंत दूर की जाएगी।
-जगदीश कुमार
कार्यपालन अभियंता,
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, बस्तर