मंत्री लखमा पर देवी हुई सवार, पीठ पर सांकल से करते रहे वार
गृहग्राम नागारास में चल रहे मेले में शामिल होने पहुंचे थे मंत्री कवासी =
= खुले बदन पीठ और कंधे पर कील वाली सांकल से खुद किए 17 वार =
सुकमा 27 May, (Swarnim Savera) । जिले के ग्राम नागरास में आयोजित मेला मड़ई में शामिल होने पहुंचे मंत्री कवासी लखमा पर धार्मिक अनुष्ठान के दौरान अचानक देवी सवार हो गई। दैवीय शक्ति से श्री लखमा बेसुध हो उठे और अपनी पीठ एवं कंधों पर लोहे की कीलयुक्त सांकल से स्वतः वार करने लगे। लोग देवी को मनाने की कोशिश करते रहे, लेकिन माता की भक्ति आराधना में मगन श्री लखमा कुल सत्रह बार वार झेलने के बाद ही शांत हो पाए।
सुकमा जिले के ग्राम नागारास में तीन दिवसीय मेले का आयोजन चल रहा था। नागारास गांव छत्तीसगढ़ सरकार में उद्योग, वाणिज्य एवं आबकारी मंत्री कवासी लखमा का गृहग्राम है, लिहाजा वे भी इस मेले में शामिल होने अपने गांव पहुंचे थे। वहां ग्राम प्रमुखों तथा नागारास एवं आसपास के दर्जनों गांवों के सैकड़ों ग्रामीणों और गांव के बेटे एवं केबिनेट मंत्री कवासी लखमा की उपस्थिति में मृदंग, ढोल, शहनाई एवं मोहरी की मंगल ध्वनि के बीच धार्मिक प्रक्रियाएं आरंभ हुईं। इसी दौर श्री लखमा पर देवी सवार हो गई। उन्होंने अपना कुर्ता निकाल फेंका, कमर से घुटने के नीचे तक लुंगी लपेट रखा था। दैवीय शक्ति के वशीभूत हो श्री लखमा नृत्य की मुद्रा में मचलने लगे। धार्मिक अनुष्ठान में शामिल एक व्यक्ति के हाथों से लोहे की नुकीली कीलों से युक्त सांकल को लेकर श्री लखमा ने उससे अपनी पीठ और कंधों पर वार करना शुरू कर दिया। वहां मौजूद लोग श्री लखमा पर सवार देवी शक्ति के आगे नतमस्तक और अभिभूत होते रहे। इसी बीच भीड़ में शामिल तीन लोग सामने आए और श्री लखमा से सांकल लौटाने की मिन्नत करने लगे, लेकिन सांकल देने से इंकार की मुद्रा में सिर हिलाते रहे। श्री लखमा को इस स्थिति में देख उनके सुरक्षा कर्मी परेशान हो उठे थे, मगर जन आस्था और श्री लखमा की श्रद्धा भक्ति के सामने वे भी बेबस हो गए थे। अपने शरीर पर सांकल से कुल सत्रह बार वार झेलने के बाद ही श्री लखमा थोड़ा शांत हुए और सांकल एक व्यक्ति के हवाले कर दी। अंततः श्री लखमा को धूप दीप दिखाकर उन पर सवार देवी को मनाया गया।
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लखमा पर पहले भी सवार हो चुकी है देवी
मंत्री कवासी लखमा पर देवी सवार होने की यह पहली घटना नहीं है, बल्कि इससे पहले भी उन पर कई दफे देवी सवार हो चुकी है। इस तरह की घटना उनके साथ होती ही रहती है। खासकर आदिवासियों के धार्मिक कार्यक्रमों और अनुष्ठानों के दौरान उन पर देवी सवार हो ही जाती है। कवासी लखमा भी आदिवासी समुदाय से हैं और अपनी बिरादरी के लोगों की तरह ही उनमें भी आदिवासियों के आराध्य देवी – देवताओं, अनुष्ठानों, पर्व परंपराओं पर अटूट आस्था है। सुकमा जिले में हुए इस तरह के आयोजनों में श्री लखमा इस दैवीय और चमत्कारी मुद्रा में नजर आ ही जाते हैं। वे आदिवासी नृत्यों, गीत, संगीत के भी रसिया माने जाते हैं। कहीं संगीत की स्वर लहरियां उठ रही हों और उस जगह पर मंत्री कवासी लखमा उपस्थित हों, तो वे नाचने, थिरकने न लगें, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। वे झूम झूमकर नाचने लगते हैं। उन्हें वाद्ययंत्रों के वादन का भी बड़ा शौक है। वे अनेक बार ढोल मृदंग बजाते देखे गए हैं। गृहग्राम नागारास में श्री लखमा पर जिस समय देवी सवार हुई थी, उसी वक्त एक महिला भी दैवीय शक्ति के वशीभूत हो थिरकती नजर आ रही थी।