अब नाती – पोतों के संग दिन बिताने होंगे नेताम को
वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम ने दिया कांग्रेस से इस्तीफा
राजनीति रास नहीं आ रही, परिवार नीति पर चलना ही ठीक रहेगा नेताम के लिए
-अर्जुन झा-
*जगदलपुर। बस्तर संभाग के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। उम्र के इस पड़ाव में कांग्रेस की राजनीति से सन्यास लेने के बाद संभवतः श्री नेताम को राजनीति के झंझावातों से मुक्त रहकर गृहस्थ आश्रम में ही रमे रहना पड़ेगा। भूपेश बघेल सरकार के मंत्री कवासी लखमा का वह कथन सच में तब्दील होता दिख रहा है कि अरविंद नेताम को अब नाती – पोतों के साथ खेलने – खिलाने में व्यस्त हो जाना चाहिए। अब तो बस यही कहा जा सकता है कि अरविंद नेताम को राजनीति रास नहीं आ रही है, इसलिए उन्हें परिवार नीति में ही जीवन के आनंद का रस लेना चाहिए।
एक समय था, जब अविभाजित मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ की ही नहीं, बल्कि केंद्र की भी राजनीति में अरविंद नेताम की बड़ी धाक हुआ करती थी। वे बस्तर के अपराजेय योद्धा के रूप में तेजी से उभरे थे। श्री नेताम सांसद चुने गए, फिर उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण जगह मिली। उनकी धर्मपत्नी छबिला नेताम भी कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में आ गई थीं। विधानसभा चुनावों के दौरान छत्तीसगढ़ अंचल की विधानसभा सीटों के टिकट वितरण में मोतीलाल वोरा, पं. श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल और अरविंद नेताम की ही पसंद को अहमियत दी जाती थी। बाद के वर्षों में कांग्रेस की राजनीति में नई पौध को महत्व मिलने लगा। दूसरी और तीसरी पीढ़ी के कांग्रेस नेताओं ने बेहतर परफॉरमेंस दिखाना शुरू कर दिया। बस्तर में भी नई पीढ़ी के नेता महेंद्र कर्मा, कवासी लखमा, मोहन मरकाम, दीपक बैज, लखेश्वर बघेल, राजमन बेंजाम, विक्रम मंडावी, सारीखे आदिवासी नेताओं को कांग्रेस में बड़ा महत्व मिला। ये नेता पार्टी नेतृत्व के भरोसे पर खरे उतरे। शायद इसी के बाद अरविंद नेताम स्वयं को कांग्रेस में असुरक्षित महसूस करने लगे थे। हाल के वर्षों में उन्होंने सामाजिक संगठन सर्व आदिवासी समाज से नाता जोड़ लिया। हालिया हुए भानुप्रतापपुर सीट के उप चुनाव में सर्व आदिवासी समाज ने भी अपना प्रत्याशी उतारा था, मगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। श्री नेताम को लंबे राजनीतिक वनवास के बाद कांग्रेस ने बीते साल आयोजित रायपुर अधिवेशन की स्वागत समिति में उन्हें नामजद किया था। श्री नेताम इससे भी संतुष्ट नहीं हुए और अंततः आज उन्होंने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफे का ऐलान कर ही दिया।
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*इस्तीफे की वजह में कितना दम?*
अरविंद नेताम ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को प्रेषित त्यागपत्र में इस्तीफे की जो वजह बताई है, उसमें कितना दम है? यह सोचने वाली बात है। श्री नेताम ने लिखा है – 5 वर्ष पूर्व मैंने राहुल गांधी के आग्रह पर कांग्रेस से पुनः सक्रियता के साथ जुड़कर काम करते आ रहा था। पार्टी की राज्य इकाई और सरकार दोनों ही आदिवासियों के भरोसे पर खरी नहीं उतर पाई हैं। पेसा कानून के तहत आदिवासियों को जल, जंगल, जमीन और ग्रामसभाओं में मौलिक अधिकार नहीं दिए जा रहे हैं। आदिवासियों का हक छीना जा रहा है। सरकार आदिवासी विरोधी साबित हो रही है। अब श्री नेताम की इन बातों से भला कौन इत्तेफाक रखेगा? कांग्रेस संगठन ही नहीं, बल्कि सरकार में भी आदिवासियों को पूरा सम्मान मिल रहा है। मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज आदिवासी समुदाय से हैं, पूर्व पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम भी आदिवासी थे। आदिवासी नेता कवासी लखमा, अनिला भेंड़िया समेत अनेक आदिवासी विधायकों को भूपेश बघेल की केबिनेट में जगह मिली हुई है। वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासी कल्याण के लिए अनेक योजनाएं चला रखी हैं। आदिवासी परब सम्मान निधि योजना लागू कर प्रदेश के आदिवासियों के पर्व, तीज त्यौहारों के आयोजन के लिए राशि उपलब्ध कराई जा रही है। आदिवासी आस्था स्थलों का संरक्षण और जीर्णोद्धार कराया जा रहा है, आदिवासी संस्कृति के संरक्षण संवर्धन के लिए जमीनी तौर पर काम किया जा रहा है। स्वयं आदिवासी भी अब कांग्रेस और भूपेश बघेल सरकार की दिल खोलकर जय जयकार कर रहे हैं। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अरविंद नेताम के आरोपों में कितना दम है?
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*कहीं बेपेंदी के लोटा न बन जाएं नेताम*
अरविंद नेताम को राजनितिक पहचान कांग्रेस ने ही दिलाई है। उन्हें सत्ता और संगठन में महत्वपूर्ण पद दिए गए। बावजूद वे कभी इस डाल पर, तो कभी उस डाल पर छलांग लगाने लगे हैं। कांग्रेस में रहते हुए भी वे सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक बन गए। एक आदिवासी होने के नाते उनके इस कदम को सही मान भी लें, मगर जब यह सामाजिक संगठन राजनीति में कांग्रेस के खिलाफ ताल ठोंकने लगे, तो कांग्रेस के एक सिपाही के नाते उनका यह कदम जायज नहीं ठहराया जा सकता। अब देखना है कि अरविंद नेताम कब तक सर्व आदिवासी समाज से नाता बनाए रखते हैं। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि भाजपा अब अरविंद नेताम पर बड़ा दांव खेल सकती है। उन्हें भाजपा अपने साथ लेकर राज्य के आदिवासियों को साधने के फेर में है। अगर अरविंद नेताम सर्व आदिवासी समाज से भी दामन झटक कर भाजपा का दामन थाम लें, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा। इसके बाद तो वे छत्तीसगढ़ में बेपेंदी के लोटा के रूप में जाने जाएंगे।