हालात बदले होते तो भाजपा को नहीं पड़ती परिवर्तन यात्रा की जरूरत…

(अर्जुन झा)

जगदलपुर। छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन की जद्दोजहद में भारतीय जनता पार्टी दो छोर से परिवर्तन यात्रा निकाल रही है। छत्तीसगढ़ के दक्षिण क्षेत्र में सत्ता के समीकरण का उत्तर तलाशने भारत के गृहमंत्री अमित शाह दंतेवाड़ा से परिवर्तन यात्रा आरंभ कर रहे हैं। दूसरे छोर जशपुर से ऐसी ही यात्रा को आरंभ करने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा आ रहे हैं। भाजपा ने दोनों दिशाओं में अपने परिवर्तन यात्रा रथ रवाना कर दिए हैं। अब सवाल यह है कि भाजपा की इस परिवर्तन यात्रा का औचित्य क्या है? यह यात्रा केवल सत्ता के परिवर्तन के लिए है अथवा हालत में बदलाव के लिए यदि बात हालत में बदलाव के लिए है? स्थिति में बदलाव के लिए है तो भाजपा ने 15 साल के शासन में और भाजपा की केंद्रीय सत्ता के 9 साल में यदि हालात बदले होते तो उसे परिवर्तन यात्रा शुरू करने के लिए अमित शाह और नड्डा को नहीं भेजना पड़ता। ठीक है कि विपक्ष में रहने वाले हर राजनीतिक दल को परिवर्तन यात्रा निकालने का अवसर मिलना ही चाहिए। कांग्रेस भी परिवर्तन यात्रा निकालती थी। अब भाजपा परिवर्तन यात्रा निकाल रही है। भाजपा ने छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद पहले चुनाव के समय राज्य में चारों दिशाओं में परिवर्तन यात्राएं निकाली थीं एक यात्रा के महारथी तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष नंद कुमार साय आज कांग्रेस की सरकार में एक उपक्रम के अध्यक्ष हैं। इससे यह अंदाज किया जा सकता है कि जब भाजपा का संस्थापक सदस्य कांग्रेस की सरकार में इस तरह का रुतबेदार बनना पसंद कर ले तो भाजपा की स्थिति क्या है? विपक्ष को पूरा अधिकार है कि वह सत्ता में आने के लिए हर तरह के जतन करें। करना ही चाहिए। अन्यथा लोकतंत्र का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। किंतु लोकतंत्र को गाय बकरी की तरह हांकने की मानसिकता कभी भी सिरे नहीं चढ़ती। 20 साल पहले छत्तीसगढ़ में भाजपा ने परिवर्तन यात्रा निकाली। जनता ने परिवर्तन किया। 15 साल तक कांग्रेस को परिवर्तन यात्रा निकालनी पड़ी। इसके बाद जनता ने परिवर्तन कर दिया। अब यहां देखने वाली बात यह है कि 2018 में जनता के परिवर्तन को कांग्रेस ने सत्ता के परिवर्तन के रूप में देखा अथवा छत्तीसगढ़ के हालात के परिवर्तन के रूप में। स्पष्ट देखा जा सकता है कि कांग्रेस ने इस भावना के सत्य को स्वीकार किया है की परिवर्तन केवल सत्ता का परिवर्तन नहीं होता और न ही ऐसा होना चाहिए। बल्कि सत्ता परिवर्तन का मूल उद्देश्य हालात के परिवर्तन से होता है। तो कांग्रेस ने 5 साल में जितना भी बन पड़ा, उतना परिवर्तन हालात में किया है। यदि भाजपा ने छत्तीसगढ़ के 15 साल और केंद्रीय सत्ता के 9 साल में छत्तीसगढ़ के हालात बदले होते तो उसे परिवर्तन यात्रा निकालने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती। यह जरूरत इसलिए पड़ रही है क्योंकि भाजपा ने छत्तीसगढ़ की जनता के आशीर्वाद से मिले अवसर को जनता की भावनाओं के अनुकूल कार्य रूप में परिणत करने में पर्याप्त रुचि नहीं ली। अब परिवर्तन यात्राओं का क्या अर्थ है? भाजपा किस बात का परिवर्तन करना चाहती है, यह जनता जानना चाहती है। क्या भाजपा राज्य में जनता की परिस्थितियों में बदलाव के लिए परिवर्तन चाहती है? यदि चाहती है तो उसने छत्तीसगढ़ के हालात में परिवर्तन तब क्यों नहीं किया, जब उसे छत्तीसगढ़ की जनता ने लगातार तीन बार सरकार बनाकर अवसर दिया। कांग्रेस जनता की कसौटी पर कितनी खरी उतरी, यह तो आने वाला परिणाम बतायेगा। किंतु यदि मैदानी राजनीति की बात की जाए तो कांग्रेस ने ‘वक्त है बदलाव का’ जो नारा दिया था, उसके मुताबिक छत्तीसगढ़ के हालात में बदलाव करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। कई क्षेत्रों में कुछ असफलताएं हो सकती हैं लेकिन असफलता और सफलता के तराजू पर जनता तौलती है और जब जनता इसका फैसला करती है तो इस पर कोई भी राजनीतिक पंडित होने का दावा करने वाला व्यक्ति खरा नहीं हो सकता। खरा सिर्फ वही उतरता है जिसने जनता की भावनाओं के अनुकूल काम किया हो। अब एक सवाल यह है कि भाजपा अपने अंदर कितना परिवर्तन कर पाई है? क्योंकि कहते हैं कि निज पर शासन, फिर अनुशासन। तो भाजपा में आज जो आंतरिक अनुशासन चल रहा है, वह क्या उसे सत्ता में ला सकता है? बस्तर के संदर्भ में बात की जाए तो भाजपा के कई दिग्गज भी यहां आत्मग्लानि का अनुभव करते नजर आते हैं कि कहां फंस गए। वे जनता को प्रभावित तो कर सकते हैं लेकिन उनके बस्तर के नेता अपनी कार्यशैली, भाव भंगिमा और आचरण से भाजपा के लिए कितने मुफीद हो सकते हैं, यह भाजपा का वह कॉडर महसूस करता है, जिसे बस्तर में राजनीतिक हालात बदलने के लिए तैनात किया गया है। ऐसी स्थिति में अमित शाह को जरूरत यह है कि परिवर्तन यात्रा शुरू करने के पहले भाजपा के आंतरिक हालात में परिवर्तन करें।

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