महारानी अस्पताल में नहीं है सुरक्षित मातृत्व की गारंटी

महिला एवं शिशु वार्ड से नदारद रहते हैं डॉक्टर =

= प्रसव पीड़ा से तड़पती रही महिला, नहीं हुआ ईलाज =

*-अर्जुन झा-*

*जगदलपुर।* प्रसव पीड़ा से एक महिला अस्पताल में घंटों तड़पती रही, मगर बेदर्द डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा। वे अपने घरों में चैन की नींद लेते रहे। पूरे प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की चौबीस घंटे ड्यूटी रहती है, लेकिन जगदलपुर के जिला चिकित्सालय महारानी अस्पताल के डॉक्टरों के लिए शायद यह व्यवस्था लागू नहीं होती। यहां के डॉक्टर शाम ढलने के बाद जिला चिकित्सालय को नर्सेज के भरोसे छोड़ अपने निजी क्लीनिक या घर के लिए रवाना हो जाते हैं। इस अस्पताल के महिला एवं शिशु वार्ड का तो और भी बुरा हाल है। वार्ड के मुख्य द्वार के शीर्ष पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा है सुरक्षित मातृत्व आश्वासन, लेकिन यहां सुरक्षित प्रसव और सुरक्षित मातृत्व की गारंटी नहीं है।

            जगदलपुर स्थित महारानी अस्पताल, जो कि बस्तर का जिला चिकित्सालय है। यह जिला चिकित्सालय पूरे बस्तर संभाग का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है। इसके अलावा यहां एक सरकारी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल भी संचालित है। यह भी बस्तर संभाग के इकलौता बड़ा सरकारी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल है। इन दोनों सरकारी अस्पतालों पर बस्तर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर, कोंडागांव, कांकेर जिलों के लोग ईलाज के लिए आश्रित रहते हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने इन दोनों सरकारी अस्पतालों का कायाकल्प कराया है। दोनों अस्पतालों को तमाम अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस किया गया है। बस्तर जिले के अलावा आसपास के जिलों के लोग भी बड़ी तादाद में यहां के इलाज पर विश्वास करते हैं, किंतु अब दोनों अस्पतालों की अव्यवस्था और प्रशासनिक लचरता के कारण मरीज बहुत परेशान हो रहे हैं। दोनों अस्पतालों के डॉक्टरों की लापरवाही और मनमानी चरम सीमा पर पहुंच गई है। शासन से 70 हजार रु. से लेकर सवा लाख रु. तक कल की मोटी तनख्वाह लेने वाले डॉक्टर्स निरंकुश हो चले हैं। ज्यादातर डॉक्टर ड्यूटी समय पर इन अस्पतालों से गायब रहते हैं। सोमवार को महारानी अस्पताल जिला चिकित्सालय में एक बड़ा ही कारूणिक दृश्य सामने आया। प्रसव के लिए जिला चिकित्सालय लाई गई महिला प्रसव वेदना से तड़पती रही, मगर उसकी सुध लेने एक भी डॉक्टर सामने नहीं आया। महिला की हालत देख आसपास मौजूद लोग द्रवित हो उठे, कुछ महिलाएं तो रोने भी लगी थीं, लेकिन पत्थर दिल डॉक्टर नहीं पसीजे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के दिन 2 अक्टूबर की देर रात एक ग्रामीण महिला को प्रसव के लिए परिजन महारानी अस्पताल लेकर पहुंचे थे। महिला को अस्पताल के मातृ एवं शिशु वार्ड में रखा गया था। रात में तो कोई डॉक्टर इस वार्ड में ड्यूटी पर था ही नहीं, सुबह 6.30 बजे तक भी कोई डॉक्टर नहीं पहुंचा था। महिला प्रसव पीड़ा से बुरी तरह तड़पने लगी थी। वह दर्द के चलते छटपटा रही थी और उसकी हालत लगातार बिगड़ती चली जा रही थी। जच्चा बच्चा की जान को गंभीर खतरा पैदा हो गया था। उसके परिजन वार्ड में मौजूद स्टॉफ से मिन्नतें करते रहे कि डॉक्टर को बुला दीजिए, मगर डॉक्टर को नींद से जगाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई। आखिरकार परिजन किराए की गाड़ी बुलाकर महिला को दूसरे अस्पताल में ले गए। महिला को ले जाने के लिए एम्बुलेंस की सुविधा भी नहीं मिल सकी।

*बॉक्स*

*ये कैसा सुरक्षित मातृत्व आश्वासन?*

छत्तीसगढ़ सरकार सुरक्षित प्रसव को बढ़ावा देने सरकारी अस्पतालों को करोड़ों रुपयों का फंड उपलब्ध कराती है। प्रसव के लिए महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने जननी एम्बुलेंस सुविधा उपलब्ध कराई गई है। बस्तर जैसे नक्सल प्रभावित संभाग में पदस्थ डॉक्टर्स और स्टॉफ को अपेक्षाकृत ज्यादा वेतन, विशेष भत्ता और अन्य सुविधाएं दी जाती हैं। बावजूद बस्तर में पदस्थ अधिकतर सरकारी डॉक्टर अपने कर्तव्य के प्रति सजगता नहीं दिखाते। महारानी अस्पताल जिला चिकित्सालय के मातृ शिशु वार्ड को कादंबनी नाम दिया गया है। वार्ड के मेन गेट के सामने वाले हिस्से के ऊपरी भाग में लिखा है ‘कादंबनी’ और ठीक उसके ऊपर लिखा है ‘सुरक्षित मातृत्व आश्वासन’। कादंबनी का तात्पर्य उस कदम पेड़ से है, जिस पर बाल गोपाल कान्हा खेला करते थे। मगर जगदलपुर के जिला चिकित्सालय में बाल गोपाल की किलकारी गूंजे, इसकी गुंजाईश कम ही रहती है। वहीं सुरक्षित मातृत्व आश्वासन महज शब्दों तक सीमित है। यहां पहुंचने वाली महिलाओं का सुरक्षित प्रसव कराकर उन्हें मातृत्व सुख देने से डॉक्टरों का शायद कोई सरोकार नहीं रह गया है।

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