उजड़ जाता लोहंडीगुड़ा, अगर तुम न होते…

टाटा को बाय बाय, वापस मिली जमीन

(अर्जुन झा)

लोहंडीगुड़ा। चित्रकोट विधानसभा चुनाव के दौरान लोहंडीगुड़ा को वह मंजर याद किया जा रहा है जब लोहंडीगुड़ा के आदिवासियों की जमीन टाटा के हाथों में सौंप दी गई थी। वह दौर याद किया जा रहा है जब कांग्रेस ने आदिवासियों के हक में भाजपा सरकार के खिलाफ संघर्ष किया था। जिसमें दीपक बैज ने अहम भूमिका निभाई थी। सरकार भाजपा की थी तो आदिवासियों की जमीन टाटा को मिल गई। आदिवासी खुद को लुटा हुआ महसूस कर रहे थे। भाजपा पर भरोसा किया था, भाजपा ने ही जमीन छीनकर वैसे ही निजी हाथ पर रख दी, जैसे नगरनार इस्पात संयंत्र के निजीकरण की प्रक्रिया चर्चित है। अब याद किया जा रहा है कि जब लोहंडीगुड़ा के आदिवासी किसानों की जमीन टाटा के लिए अधिग्रहित की गई थी और इंद्रावती के झरने की तरह निश्चल आदिवासी छले गए थे, तब कांग्रेस ने वादा किया था कि सत्ता में आने पर आदिवासी किसानों की जमीन वापस देंगे। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी। संघर्ष के समय भी दीपक बैज यहां के विधायक थे और जब कांग्रेस की सरकार बनने पर आदिवासियों के अच्छे दिन आए, तब भी दीपक यहां के विधायक थे। उन्होंने लोहंडीगुड़ा से किया गया वादा पूरा करा दिया। कांग्रेस की सरकार बनते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भाजपा राज में छीनी गई जमीन आदिवासियों को लौटा दी। लोकसभा चुनाव आए तो कांग्रेस ने लोहंडीगुड़ा के लाल दीपक बैज को बस्तर लोकसभा सीट कांग्रेस के लिए जीतने की जिम्मेदारी दी। दीपक सफल रहे। केवल कांग्रेस का ही दिल नहीं जीता बल्कि पूरे बस्तर का दिल जीत लिया। लोग बस्तर संभाग के दोनों सांसदों के कामकाज की तुलना करते हैं तो दीपक बैज के काम पूरे बस्तर में भारी पड़ते हैं। अब दीपक बैज फिर चित्रकोट विधानसभा क्षेत्र में उम्मीदवार हैं तो वे केवल एक प्रत्याशी नहीं हैं। वे लोहंडीगुड़ा बचाने वाले योद्धाओं के सिरमौर यानी छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। आज के दौर में वादे बहुत होते हैं। ये पूरे नहीं होते। वादों से उम्मीद बढ़ती है लेकिन जब वादे टूटते हैं तो दिल टूट जाता है। एक मशहूर शेर है कि- उम्मीद तो बंध जाती, तस्कीन तो हो जाती, वादा न वफ़ा करते, वादा तो किया होता..! कोई ऐसा न कहे, इसलिए राजनीतिक दल वादे पर वादे कर देते हैं। वादे निभाने की बात है तो दीपक बैज और उनकी कांग्रेस वादे पूरे करने वाले के तौर पर पहचानी जा रही है। यहां सुनने को मिल रहा है कि दीपक बैज न होते तो भाजपा की कृपा से आदिवासियों से छीनी गई जमीन कभी वापस नहीं मिलती। एक बार यह सिलसिला चल पड़ता तो लोहंडीगुड़ा अपनी कुदरती पहचान खो देता। दीपक बैज की युवा सोच ने न केवल लोहंडीगुड़ा बचा दिया वरन वनोपज आधारित ऐसे उद्योग खुलवा दिए कि स्थानीय महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूती मिल रही है और लोहंडीगुड़ा दुनिया भर में मशहूर हो रहा है।

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