लोकसभा चुनाव से पहले गुजरात में बड़ा खेल, अर्जुन मोढवाडिया-अंबरीश समेत कई दिग्गज BJP में शामिल
गांधीनगर: लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गुजरात में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले अंबरीश डेर और सीनियर विधायक अर्जुन मोढवाडिया ने मंगलवार को भाजपा का दामन थाम लिया है. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल की मौजूदगी में अंबरीश डेर, वरिष्ठ विधायक अर्जुन मोढवाडिया और अन्य ने भाजपा की सदस्यता ली. बता दें कि कांग्रेस की गुजरात इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष अंबरीश डेर और वरिष्ठ विधायक अर्जुन मोढवाडिया ने सोमवार को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का ‘बहिष्कार’ करने के पार्टी के निर्णय पर आक्रोश प्रकट करते हुए इस्तीफा दे दिया था.
बता दें कि गुजरात में कांग्रेस को ऐसे वक्त में झटका लगा है, जब राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के गुजरात में प्रवेश करने से महज तीन दिन पहले अपने निर्णय की घोषणा की. अंबरीश डेर और मोढवाडिया के कांग्रेस छोड़ने से कुछ दिन पहले, पार्टी के राज्यसभा सदस्य और पूर्व केंद्रीय मंत्री नाराण राठवा अपने बेटे और बड़ी संख्या में समर्थकों के साथ सत्तारूढ़ भाजपा में शामिल हो गए थे.
पोरबंदर सीट से विधायक मोढवाडिया ने सोमवार शाम गांधीनगर में गुजरात विधानसभा अध्यक्ष शंकर चौधरी को विधानसभा सदस्यता से अपना इस्तीफा सौंपा. विधानसभाध्यक्ष के कार्यालय ने इस्तीफा स्वीकार किए जाने की पुष्टि की. मोढवाडिया ने बाद में पत्रकारों से कहा कि उन्होंने कांग्रेस से सभी पदों और प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. गुजरात में सबसे वरिष्ठ और सबसे प्रभावशाली विपक्षी नेताओं में से एक मोढवाडिया (67) लगभग 40 वर्ष तक कांग्रेस से जुड़े रहे. वह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष भी रहे. मोढवाडिया ने 2022 के चुनावों में पोरबंदर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के दिग्गज नेता बाबू बोखिरिया को हराया था.
मोढवाडिया के इस्तीफे के साथ ही 182 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की संख्या घटकर 14 रह गई है. मोढवाडिया पिछले चार महीनों में चिराग पटेल और सीजे चावड़ा के बाद इस्तीफा देने वाले कांग्रेस के तीसरे विधायक हैं। पटेल ने दिसंबर और चावड़ा ने जनवरी में इस्तीफा दिया था. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को संबोधित एक पत्र में, मोढवाडिया ने कहा कि अयोध्या में ‘बालक राम’ के ‘प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव’ के निमंत्रण को अस्वीकार करके, पार्टी नेताओं ने न केवल भारत की जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचाई, बल्कि पार्टी लोगों की भावनाओं का आकलन करने भी विफल रही.