जहरीले पानी ने बैसाखी के सहारे टिका दी है ग्रामीणों की जिंदगी

फ्लोराईड युक्त पानी ले चुका है कइयों की जान, कई हो चुके अपंग =
= जहरीला पानी पीने के लिए मजबूर हैं डिमरापाल गांव के ग्रामीण =
-अर्जुन झा-
बस्तर 17 May, (Swarnim Savera) । पानी को अमृत कहा जाता है, मगर एक गांव की पूरी आबादी के लिए यही अमृत अब जहर बन चुका है। यह जहरीला पानी अनेक ग्रामीणों की जान ले चुका है और अनेक ग्रामीणों को अपाहिज बना चुका है। इस पानी ने ग्रामीणों की जिंदगी को बैसाखी के सहारे टिका दी है। ग्रामीण प्यासे मरने की अपेक्षा जहरीले पानी को ही पीकर तिल तिल मरना ज्यादा बेहतर समझने लगे हैं। ऐसे घातक पानी का इस्तेमाल करना बदनसीब ग्रामीणों की मजबूरी बन गई है, क्योंकि उनके सामने और कोई दूसरा विकल्प है ही नहीं।
आज पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। यह आजादी और अमृत महोत्सव ग्राम डिमरापाल के ग्रामीणों के लिए बेमानी ही हैं। देश को आजाद हुए सात दशक से भी ज्यादा का समय गुजर चुका है, लेकिन बस्तर विधानसभा क्षेत्र के ग्राम डिमरापाल के ग्रामीणों को समस्याओं की गुलामी से अब तक आजादी नहीं मिल पाई है। खासकर पेयजल के मामले में यह गांव बड़ा अभागा है। यहां की धरती के गर्भ में जो पानी मौजूद है, उसमें फ्लोराईड की मात्रा खतरनाक लेवल की है। डिमरापाल के ग्रामीण इसी जहरीले पानी को पीने और उससे भोजन तैयार करने विवश हैं। दशकों से यहां के ग्रामीण इसी पानी के जरिए दिन गुजारते आ रहे हैं। पानी में मिश्रित फ्लोराईड इतना घातक है कि उसका लंबे समय से सेवन करते रहने के कारण डिमरापाल के अनेक ग्रामीण असमय ही मौत का निवाला बन चुके हैं। वहीं इस जहरीले पानी के दुष्प्रभाव के कारण दर्जनों ग्रामीण अपंगता का शिकार बन चुके हैं। इनमें से ज्यादातर ग्रामीणों के दांत झड़ चुके हैं, उनके हाथ – पैरों की हड्डियां कमजोर हो चली हैं। उन्हें चलने फिरने के लिए बैसाखी का सहारा लेना पड़ रहा है। जवान ग्रामीण भी बिना बैसाखी के चल नहीं पाते। गांव का हर चौथा ग्रामीण अपंगता का शिकार है। गांव में पानी की कलकल ध्वनि तो सुनाई नहीं देती, अलबत्ता वहां की हर गली में बैसाखियों की ठक ठक की आवाज जरूर गूंजती रहती है। ग्रामीणों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए बोर कराकर ऊंचे प्लेटफार्म पर प्लास्टिक की टंकी स्थापित कर दी गई है। इसका पानी भी फ्लोराईड युक्त है, लेकिन ग्रामीण इसी पानी का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हैं। अप्रैल 2021 में शासन प्रशासन द्वारा डिमरापाल में आयोजित जन चौपाल शिविर में ग्रामीणों ने जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के समक्ष जहरीले पानी का मुद्दा उठाया था। जनप्रतिनिधि और अधिकारी आश्वासन देकर लौट गए, लेकिन समस्या दूर करने का तनिक भी प्रयास नहीं किया गया। आज भी ग्रामीण अभिशप्त नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।
बॉक्स
कोसारटेड़ा बांध का पानी महज सपना
ग्रामीणों की परेशानी को देखते हुए जन चौपाल में पहुंचे जनप्रतिनिधि और अधिकारियों ने गांव वालों को भरोसा दिलाया था कि डिमरापाल गांव के हर घर तक तक पाईप लाइन के जरिए नलों से कोसारटेड़ा जलाशय का पानी पहुंचाया जाएगा। इस पर काम भी शुरू हुआ, लेकिन कोसारटेड़ा बांध का पानी आज भी डिमरापाल के ग्रामीणों के लिए महज सपना ही बना हुआ है। कोसारटेड़ा बांध से पाईप लाइन बिछाई तो गई, लेकिन वह डिमरापाल से तीन किलोमीटर दूर ही रह गई। जिस डिमरापाल गांव को शुद्ध पेयजल की सबसे ज्यादा जरूरत है, उसे नजरअंदाज कर ग्राम पंचायत जैबेल तक ही पाईप लाइन बिछाई गई है। डिमरापाल के ग्रामीण आज भी अपने गांव तक पाईप लाइन विस्तार की राह देख रहे हैं।
बॉक्स
क्यों मौन हैं सुख दुख के साथी विधायक ?
बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष एवं क्षेत्रीय विधायक लखेश्वर बघेल का इस मुद्दे को लेकर मौन साधे रहना और बेफिक्र बने रहना डिमरापाल के ग्रामीणों को बहुत खटक रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि डिमरापाल आदिवासी बहुल गांव है और विधायक श्री बघेल के कंधों पर आदिवासियों का दुख दर्द, कष्ट दूर करने की महति जिम्मेदारी भूपेश बघेल सरकार ने डाल रखी है। ग्रामीण सवाल उठा रहे हैं कि विधायक को डिमरापाल के आदिवासियों के दर्द का अहसास आखिर क्यों नहीं हो पा रहा है? विधायक लखेश्वर बघेल क्षेत्र के ग्रामीणों के घरों में आयोजित विवाह, जन्मदिन समारोहों, मरनी हरनी, छट्ठी बरही के कार्यक्रमों में सहभागी बनने का तो दम भरते हैं, मगर डिमरापाल के ग्रामीणों पर टूट रही विपदा का दर्द बांटने का समय उन्हें कब मिलेगा ?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed