बस्तरिया कमल, दिखा रहे हलचल…

0 नीलकंठ – केदार बन सकते हैं गद्दीदार

0 कहीं न कहीं दिखेगा लता-विक्रम का पराक्रम

*(अर्जुन झा)*

जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के चुनाव में बस्तर से कांग्रेस का बोरिया बिस्तर सिमट गया है। भाजपा के सूखे सरोवर में एक साथ 8 कमल खिल उठे हैं। चुनाव के पहले बस्तर में कांग्रेस का मखमली बिस्तर बिछा हुआ था। उसके पांव जमीं पर नहीं पड़ रहे थे। बस्तर की सभी 12 सीटों पर एकछत्र राज कर रही थी। कल चमन था, आज इक सेहरा हुआ, देखते ही देखते ये क्या हुआ? जो हुआ, वह कांग्रेस की करनी का फल है। जिस पेड़ पर बैठे, उसी को काट रहे थे, यह तो अनुभव किया जा रहा था। इसके अलावा कांग्रेस यह हकीकत भूल बैठी थी कि शोहरत की बुलंदी पल भर का तमाशा है, जिस शाख में बैठे हो, वह टूट भी सकती है! 5 साल की सत्ता में कांग्रेसी बौरा गए थे। सब मिलकर कांग्रेस को ही काटने में लगे थे। ऐसे में नतीजा वही निकला, जो निकलना था। सत्ता से 5 साल के वनवास में उन नकचढ़े भाजपाइयों का अहंकार टूट गया, जो 15 साल की सत्ता में यह सुध बिसरा गए थे कि जहाज का पंछी कितना भी उड़ ले, लौटकर जहाज पर ही आना पड़ता है। जनता जहाज है और राजनेता पंछी। यह बात जब वे भूल जाते हैं और पंख जवाब दे देते हैं तो फिर जनता की शरण में आना पड़ता है। गनीमत है कि भाजपा के पंछियों को यह हकीकत पांच साल में समझ आ गई। कांग्रेस में इसके विपरीत प्रभाव दिखा। खैर, हो होना था, सो हो गया। जो पहले बस्तर में 15 साल तक धूम मचा रहे थे, वे भी हमारे अपने बस्तरिया ही थे। 5 साल में जिनके पर कुछ ज्यादा ही निकल आए, वे भी बस्तर के लख्ते जिगर थे। अब फिर जिन्हें बस्तर की जनता ने जिम्मेदारी सौंपी है, वे सभी बस्तर की संतान हैं। सभी का स्वागत, सभी का सम्मान। अब बात करें कि कांग्रेस के समय सत्ता में बस्तर की स्थिति की तो सभी सीटें कांग्रेस को सौंप देने वाले बस्तर को सिर्फ एक मंत्री मिला। कार्यकाल पूरा होते होते आखिर में यह संख्या 2 पर पहुंची। मगर उल्टा नुकसान हुआ। 15 साल तक भाजपा की सरकार में बस्तर का जलवा रहा है। लगभग सभी बड़े चेहरे मंत्री बने। इनमें केदार कश्यप, विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी, महेश गागड़ा के नाम शामिल हैं। इस बार चुनाव जीतने वाले पूर्व मंत्रियों में केदार कश्यप, विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी जैसे बड़े नाम के साथ ही नौकरशाह से राजनेता बने नीलकंठ टेकाम भी शामिल हैं। नीलकंठ को अचानक भाजपा की टिकट मिली और उन्होंने केशकाल में विधानसभा उपाध्यक्ष रहते संतराम नेताम को परास्त कर दिया। पूर्व मंत्री लता उसेंडी कांग्रेस के मोहन मरकाम से लगातार हार के बाद इस बार जीत गईं। मोहन ने लता को मंत्री रहते हुए हराकर शुरुआत की थी तो लता ने मोहन का सत्ता का सफर तब रोक दिया, जब वे मंत्री थे। विक्रम उसेंडी रमन सिंह की सरकार में मंत्री रहे, कांकेर के सांसद रहे, प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वे वरिष्ठ आदिवासी नेता हैं और केदार कश्यप तो पिछली बार हार के शिकार होकर भी भाजपा संगठन के प्रदेश महामंत्री रहे हैं। भाजपा के तीनों महामंत्री चुनाव जीते हैं। इनमें से एक प्रखर हिंदुत्व के प्रतिनिधि विजय शर्मा उप मुख्यमंत्री बन चुके हैं। एक महामंत्री ओपी चौधरी को भी सम्मान मिल सकता है लेकिन एक अन्य महामंत्री केदार कश्यप सत्ता की राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। वे बस्तर के विजेताओं में भाजपा के सबसे अनुभवी नेता हैं। 15 साल सरकार में बस्तर का चेहरा रहे हैं। अब खबर यह भी है कि विष्णुदेव मंत्रिमंडल में ज्यादातर नए चेहरे हो सकते हैं लेकिन क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से वरिष्ठ को भी अहमियत दी जा सकती है। नए नेतृत्व की बात है तो नीलकंठ फ्रेश फेस हैं। राजनीति में ताजा हवा के झोंके हैं। नवीनता लानी है तो वे विष्णु सरकार में मंत्री हो सकते हैं। केदार और नीलकंठ की संभावना अधिक चर्चित हो रही है। यदि बस्तर को दो मंत्री मिले तो यह दोनों स्थान पा सकते हैं। लता के साथ उलझन फिलहाल यह है कि केंद्रीय राज्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने वाली रेणुका सिंह की वजनदारी ज्यादा है। वे लता से पहले महिला बाल विकास मंत्री रह चुकी हैं। इस बार महिला मंत्री की संख्या बढ़ी तो सांसद से विधायक बनीं गोमती साय को भी नजरअंदाज करना मुश्किल होगा। ऐसे में यदि लता मंत्री नहीं बनीं तो वे भविष्य में महिला आयोग की सिरमौर बन सकती हैं। वैसे भी वे भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं और आने वाले लोकसभा चुनाव में उन्हें बस्तर सीट से उतारने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। विक्रम उसेंडी को कहीं समायोजित किया जा सकता है। भाजपा ने आदिवासी मुख्यमंत्री दे दिया है। इसलिए अब संगठन पर आदिवासी नहीं बैठ सकता, ऐसा कोई बंधन नहीं है लेकिन आम तौर पर ऐसा नहीं होता है। तब भी भाजपा प्रयोगधर्मी राजनीतिक दल है। जब यह आदिवासी दिवस पर आदिवासी अध्यक्ष हटाकर उसे ही सरकार में आते ही मुख्यमंत्री बना सकती है तो कुछ भी कर सकती है।

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