बस्तरवासियों में मतभेद पैदा करने की साजिश !
भाईचारा और सौहाद्र बिगाड़ने का चल रहा खेल =
= हिंदू त्यौहार मनाने पर 5 हजार रु. जुर्माना और 3 साल की सजा की दे रहे चेतावनी =
*-अर्जुन झा-*
*जगदलपुर।* त्यौहारों के नाम पर पिछले कुछ दिनों से बस्तर जिले के दूरस्थ गांवों में लोगों के बीच मतभेद पैदा करने की साजिश चल रही है। ऑटो में लाउड स्पीकर लगाकर आदिवासियों को हिंदू त्यौहार न मनाने की चेतावनी देते हुए खुलेआम धमकी दी जा रही है कि हिंदू त्यौहार मनाने वालों पर पांच हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा और उन्हें तीन साल की सजा दी जाएगी।
दूर दराज के गांवों में विभिन्न वाहनों पर लाउड स्पीकर लगाकर खुलेआम आदिवासियों और सामान्य वर्ग के लोगों को उकसाने वाला प्रचार किया जा रहा है। लाउड स्पीकर से अनाउंस किया जा रहा है – राखी बंद राखी बंद, आदिवासियों को रक्षा बंधन, होली, दशहरा, दीपावली नहीं मनाना है और न गणेश प्रतिमा स्थापित करनी है, न ही दुर्गा प्रतिमा। ये आदिवासियों के त्यौहार नहीं हैं, बल्कि मनुवादियों के पर्व और त्यौहार हैं। ये बाहरी लोगों के त्यौहार हैं और इससे बाहरी लोगों को फायदा हो रहा है। हमारे पूर्वज हमें जो पूजा पाठ सिखा गए हैं और हमारे पुरखे जो त्यौहार मनाते रहे हैं, उन्हीं पर हमें चलना है। हम लोगों के त्यौहार आमुस, दियारी, माटी तिहार हैं। यह त्यौहार हमारे परंपरागत त्यौहार हैं। हमें यही मनाना है। मनुवादियों के त्यौहार मनाने वाले आदिवासियों पर पांच हजार का जुर्माना लगाया जाएगा और तीन साल की सजा दी जाएगी। इसी तरह का प्रचार करता ऑटो वाहन क्रमांक सीजी 17 केएस 1890 एक गांव में नजर आया। इस तरह का प्रचार किस संगठन या समुदाय द्वारा किया जा रहा है, इसका उल्लेख प्रचार करने वाला व्यक्ति नहीं करता। इसलिए इसके पीछे बड़ी साजिश की बू आ रही है। साजिशकर्ताओं का साफ उद्देश्य है कि बस्तर के आदिवासियों और सामान्य वर्ग के लोगों के बीच गहरी खाई पैदा की जाए और उन्हें आपस में लड़ाया जाए। बस्तर जिले में आदिवासी और अन्य समुदायों के लोग मिल जुलकर रहते आए हैं। यहां के लोग सभी तीज त्यौहार मिलकर मनाते हैं। आदिवासी दशहरा, दीपावली, होली, रक्षा बंधन मनाते हैं और भगवान गणेश स्थापित कर गणेश उत्सव एवं दुर्गा माता की प्रतिमा स्थापित कर नवरात्रि धूमधाम से मनाते हैं।
*बॉक्स*
*आदिवासी ही हैं हिंदू त्यौहारों के नायक*
प्रचार में बताए जा रहे तथाकथित मनुवादी या फिर हिंदू त्यौहारों पर बस्तर में होने वाले आयोजनों पर नजर डालें, तो भाईचारे की बेमिसाल बानगी मिलती है। इन सभी त्यौहारों के असली नायक तो आदिवासी ही हैं। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के शुरू से लेकर समापन तक के हर रस्म को आदिवासी ही निभाते हैं। दीपावली भगवान रामचंद्र के लंका पर विजय प्राप्त कर लौटने की खुशी में मनाई जाती है। वनवास के दौरान भील आदिवासी महिला द्वारा भगवान राम को झूठे बेर खिलाए जाने को कोई झुठला नहीं सकता। बस्तर के बारसुर में भगवान गणेश की अति प्राचीन एवं विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा का होना तथा यहां के आदिवासियों की आराध्य देवी दंतेश्वरी माई का प्राचीन मंदिर दंतेवाड़ा में होना इस बात के प्रमाण हैं कि आदिवासी धर्मशील होते हैं। मां दंर्लतेश्वरी को दुर्गा का ही एक रूप माना जाता है और उनके मंदिर के पुजारी एवं सभी सेवादार आदिवासी ही हैं। रही रक्षा बंधन की बात, तो यह कोई धार्मिक त्यौहार नहीं, बल्कि भाई बहन के पवित्र रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने वाला एक उत्कृष्ट पर्व है।