संवेदनशील रेखचंद जैन को नकारना होगा घातक
जगदलपुर विधायक जैन की सदाशयता की सानी नहीं=
= गरीब युवक की अर्थी को कंधा दे अंतिम क्रिया में मौजूद रहकर जैन ने निभाया राजधर्म =
*-अर्जुन झा-*
*जगदलपुर।* अपनी जनता की हर तकलीफ, हर दुख को अपनी पीड़ा समझकर पीड़ित के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहने वाला जनप्रतिनिधि ही राजधर्म का अनुगामी कहलाने का असली हकदार है। जगदलपुर के विधायक रेखचंद जैन राजधर्म का सही में अनुपालन करने वाले जनप्रतिनिधि हैं। एक गरीब आदिवासी युवक की अर्थी को कंधा देते हुए मरघट तक पहुंचाकर और अंत्येष्टि निपटते तक दुखी परिवार के साथ खड़े रहकर रेखचंद जैन ने समाज के सामने एक बड़ी मिसाल पेश की थी। दिल की गहराइयों में उतर जाने वाले इस कदम ने रेखचंद का कद ही ऊंचा नहीं किया है, बल्कि उन्हें जगदलपुर विधानसभा क्षेत्र में जन जन का दुलारा भी बना दिया है। ऐसे जनप्रिय जनप्रतिनिधि की उपेक्षा कर कांग्रेस अगर किसी और को टिकट देती है, तो यह कांग्रेस के लिए ही घातक साबित होगा।
राजा महाराजाओं के दिन तो गुजरे जमाने की बात हो गई है, मगर एक बात आज भी चलन में है – राजधर्म निभाना। आज के राजा प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद और विधायक माने जाते हैं। क्योंकि राजकाज चलाने की जिम्मेदारी उन्हीं पर होती है। उनसे राजधर्म के पालन की अपेक्षा आज की प्रजा रखती है। प्रजा की इस अपेक्षा पर जगदलपुर के कांग्रेस विधायक रेखचंद जैन सौ फीसद खरे उतरे हैं। क्षेत्र की जनता की समस्याओं को दूर करने में वे हमेशा अव्वल रहे हैं। लोगों के हर दुख तकलीफ में भी वे पीड़ित पक्ष के साथ खड़े नजर आते हैं। क्षेत्र के किसी परिवार में कोई विपदा आई हो, कोई व्यक्ति बीमार पड़ गया हो, किसी गरीब का बेटा धन की तंगी के कारण उच्च शिक्षा से वंचित हो रहा हो, किसी गरीब बेटी की शादी में अड़चन आ रही हो, किसी गरीब के घर में चूल्हा न जल पा रहा हो, तब देवदूत बनकर रेखचंद जैन खड़े हो जाते हैं। श्री जैन की ऐसी सदाशयता के सैकड़ों उदाहरण हैं। छुई मिट्टी खदान धसकने से जब करीब आधा दर्जन लोगों की मृत्यु हो गई थी, तब सबसे पहले पीड़ितों की मदद के लिए हाथ रेखचंद जैन ने ही बढ़ाए थे। श्री जैन की एक बड़ी खासियत यह है कि वे किसी परिवार में आयोजित खुशी वाले कार्यक्रम में भले ही नहीं जाएं, मगर दुख और शोक के समय वे जरूर पहुंच जाते हैं, चाहे वह परिवार किसी भी दल का समर्थक क्यों न हो। गरीब परिवारों के सदस्य की मृत्यु की सूचना मिलते ही वे फौरन दुखी परिवार के आंसू पोंछने पहुंच जाते हैं। वे अर्थी को कंधा देकर श्मशान घाट तक भी जाते हैं और अंत्येष्टि निपट जाने के बाद ही लौटते हैं। रेखचंद जैन जगदलपुर के शांतिनगर वार्ड में बीते हफ्ते एक व्यक्ति की अर्थी को कंधा देते दिखे थे। इसके पहले वे सड़क दुर्घटना में मृत पंडरीपानी के एक ग्रामीण की अर्थी को कंधा देते श्मशान घाट तक पहुंचे थे। नगरनार के तालाब में डूबकर मृत छात्र के शव को भी रेखचंद ने कंधा दिया था। रेखचंद जैन की इस संवेदनशीलता ने उन्हें क्षेत्र के लोगों का चहेता बना दिया है।. लोग उनके मुरीद हो गए हैं। अगर ऐसे हर दिल अजीज इंसान को नजरअंदाज कर किसी और को टिकट दिया गया, तो लोगों की भावना आहत होगी और कांग्रेस को बड़ा खामियाजा भी भोगना पड़ सकता है।