शा. विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग के मनोविज्ञान विभाग द्वारा हाइब्रिड व्याख्यान श्रृखला का आयोजन किया गया.

Bhilai, /- शा. विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग के
मनोविज्ञान विभाग द्वारा हाइब्रिड व्याख्यान श्रृखला का आयोजन किया गया. आज का व्याख्यान माला
मनोविज्ञान का भारतीय दृष्टिकोण विषय पर आधारित था. महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. एम.ए. सिद्धकी के
स्वागत भाषण के साथ कार्यक्रम का आरभं किया गया. प्राचार्य ने अपने वक्तव्य में व्याख्यान की प्रासंगिकता
को रेखांकित किया. व्याख्यान माला के मुख्य वक्ता महात्मा गांधी अन्तराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व
कुलपति डॉ. गिरीश्वर मिश्रा एवं बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल के प्राध्यापक प्रो. के.एन. त्रिपाठी थे. कार्यक्रम
के आरभ में मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. रचिता श्रीवास्तव ने व्याख्यान माला के मुख्य उद्देश्य पर
प्रकाश डाला एवं विभाग की छात्र नेहा फ़िलिप एवं सिमरन राजपूत द्वारा अथितियों का परिचय कराया गया.
व्याख्यान के पहले सत्र में डॉ. गिरीश्वर मिश्रा ने अपने व्यख्यान में मनोविज्ञान के भारतीय दृष्टिकोण के मुख्य
संदर्भो को उजागर किया. डॉ. मिश्रा ने कहा मनोविज्ञान का भारतीय दृष्टिकोण व्यापक चिंतन की परंपरा को समेटे
हुए है. डॉ. मिश्रा के अनुसार डॉ. सेन गुप्ता के कार्यों से भारतीय दृष्टिकोण को पहचान मिली. डॉ. मिश्रा ने अपने
व्याख्यान में कहा- भारतीय मनोविज्ञान समग्र एवं समावेशी स्वरुप का है. इसमें शरीर, मन एवं आत्मा तीनों का
मंथन किया जाता है. यह चेतना को प्रमुख मानता है. चेतना सर्वव्यापी है. मन आतंरिक रूप से अनुशासित होता है.
सशर्त से बहार अशर्त चिंतन एवं अनुभव पर बल देता है. इसका उद्देश्य सत्यम, शिवमं, सुन्दरम् से प्रेरित है.
व्याख्यान माला के अगले सत्र में प्रो. के.एन. त्रिपाठी ने मनोविज्ञान के भारतीय दृष्टिकोण उपयोग पर विशेषरूप
से प्रकाश डाला. प्रो. त्रिपाठी अपने व्याख्यान में कहा की भारतीय मनोविज्ञान का अस्तित्व तब से है जब से वेदों
का अस्तित्व सामने आया. यह मन ,विचार और आचरण से जुड़ा है. मन और आत्मा सबका द्रष्टा है. मष्तिष्क के
स्पंदन से चेतना जागृत होती है. आत्मन और अहंकार से व्यव्हार जुड़ा होता है. भारतीय मनोविज्ञान स्व की बात
करता है.स्व समूह से प्रभावित होता है. सांस्कृतिक परंपरा एवं खान-पीन व्यक्ति के ज्ञान एवं व्यव्हार को प्रभावित
करता है साथ ही आध्यात्मिकता सतत ख़ुशी का आधार होता है. कार्यक्रम का संचालन डॉ. रचिता श्रीवास्तव द्वारा
किया गया एवं आभार प्रदर्शन विभाग की सहायक प्राध्यापक कु. पुष्पलता निर्मलकर किया गया. व्याख्यान माला
से विभाग की प्राध्यापक डॉ. प्रतिभा शर्मा के साथ विभाग के छात्र-छात्राएं जुड़े रहें. .छात्र-छात्राओं ने विशेषज्ञों से
प्रश्न-उत्तर कर कार्यक्रम सजीव बनाये रखा..

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