कोर्ट ने दोषी पिता की सजा रखी बरकरार, अपनी बेटी के साथ करता था दुष्कर्म

बिलासपुर /- नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म के दोषी पिता की आजीवन कारावास की सजा हाईकोर्ट ने बरकरार रखी है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की बेंच ने कहा कि आरोपी ने बच्ची को पिता जैसा प्यार और समाज की बुराइयों से सुरक्षा देने के बजाय, उसे हवस का शिकार बनाया। यह एक ऐसा मामला है जहां विश्वास को धोखा दिया गया और सामाजिक मूल्यों को नुकसान पहुंचाया गया है। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि किसी बच्ची के साथ उसके पिता द्वारा किए गए अपराध से अधिक जघन्य कुछ भी नहीं हो सकता है और बच्चों से दुष्कर्म के मामलों से निपटते समय अदालतों के लिए संवेदनशील दृष्टिकोण रखना आवश्यक है।

बिलासपुर के जिला अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने तीन साल तक अपनी ही बेटी के साथ बार-बार दुष्कर्म करने के दोषी व्यक्ति को दोषसिद्धि के बाद आजीवन कारावास की सजा दी थी। इस सजा के खिलाफ दोषी पिता ने हाईकोर्ट में अपील की थी। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के समक्ष दोषी-अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष ने उचित संदेह से परे मामले को पर्याप्त रूप से साबित नहीं किया है। पीड़ित की चिकित्सा जांच किसी भी आंतरिक या बाहरी चोट को स्पष्ट करने में विफल रही है। यह भी तर्क दिया गया कि पीड़िता की गवाही के अलावा, आरोपों का समर्थन करने वाले विश्वसनीय सबूतों की कमी है, और चिकित्सा साक्ष्य उसके दावों की पुष्टि करने में विफल हैं।

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और सबूतों और ट्रायल कोर्ट के फैसले की पूरी तरह से जांच करने के बाद कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि सुप्रीम कोर्ट में ऐसे मामलों पर कई फैसले हैं। ये फैसले आरोपी की सजा के लिए बहुत अच्छी तरह से आधार हो सकते हैं। यौन उत्पीड़न या दुष्कर्म के मामलों में पीड़िता की एकमात्र गवाही ही पर्याप्त है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने साबित कर दिया है कि यौन उत्पीड़न के समय पीड़िता नाबालिग थी और उसकी उम्र 12 साल से कम थी। पीड़िता द्वारा दी गई गवाही पर गौर करने पर कोर्ट ने पाया कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में, पीड़िता ने स्पष्ट रूप से कहा था कि उसके पिता अपने शैतानी कृत्य से उसे प्रताड़ित करते थे। पीड़ित बच्ची की गवाही पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है, जो सुसंगत और विश्वसनीय है और इसमें सच्चाई की झलक है।कोर्ट ने कहा कि पीड़िता द्वारा दी गई गवाही के अवलोकन से पता चलता है कि अपीलकर्ता द्वारा किए गए अपराध का वर्णन स्पष्ट शब्दों में किया गया है। जिरह के दौरान उसकी गवाही सुसंगत रही है। पीड़िता ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उसके पिता-अपीलकर्ता ने उसके साथ बलात्कार किया था और उसके बाद उसे घटना के बारे में किसी को बताने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी थी। अभियोजन पक्ष का बयान शुरू से अंत तक, प्रारंभिक बयान से लेकर मौखिक गवाही तक एक समान था। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं है कि दोषी पिता ने अपनी नाबालिग बेटी का यौन शोषण किया। कोर्ट ने अपीलकर्ता को दी गई दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा और अपील खारिज कर दी।

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