आरक्षण लागू करने पर रार, क्यों करें महिलाएं इंतजार.

(अर्जुन झा)*

जगदलपुर। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बस्तर सांसद दीपक बैज सहित समूची भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मांग है कि 2024 के चुनाव में महिला आरक्षण लागू होना चाहिए। लोकसभा में कांग्रेस के समर्थन से महिला आरक्षण बिल ऐतिहासिक बहुमत से पास हो गया है। राज्यसभा में भी अब कोई बाधा नहीं है। राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल 2010 में पास हो गया था लेकिन यूपीए के घटक दलों में आंतरिक अवरोध की वजह से लोकसभा में बिल पेश नहीं किया गया था। बदले हुए माहौल में भाजपा यदि चाहती तो अन्य विधेयकों की तरह महिला आरक्षण बिल भी 2014 के बाद पारित करा सकती थी। उसे तब भी कांग्रेस का समर्थन मिल सकता था। जो कांग्रेस अभी समर्थन दे रही है, वह तब भी देती। क्योंकि महिला आरक्षण कांग्रेस की पुरानी चाहत रही है। अब कहा जा रहा है कि बिल पास होने के बाद जनगणना होगी। उसके बाद परिसीमन होगा। तब कहीं जाकर महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण नसीब होगा। यानी महिला आरक्षण की दिल्ली अभी दूर है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में महिलाओं को आरक्षण मिलने की उम्मीद नहीं है। अब अचानक इस बिल को पास कराने की प्रक्रिया को राजनीतिक नजरिये से देखा जाना स्वाभाविक है। पीसीसी के कमांडर बैज का कहना है कि चुनावी सनसनी के लिये महिला आरक्षण बिल लाया गया है।जनगणना और परिसीमन के बाद ही महिला आरक्षण लागू हो पायेगा। कांग्रेस शुरू से महिला आरक्षण की पक्षधर रही है। इधर, भाजपा इस बिल पर जो बात संसद में कर रही है, वही सफाई बस्तर में भाजपा के नेता दे रहे हैं। भाजपा के जगदलपुर नगर अध्यक्ष सुरेश गुप्ता का कहना है कि कोरोना के कारण 20-21 में जनगणना नहीं हो पाई। मतलब महिला आरक्षण आगामी चुनाव में लागू नहीं होने वाला। वे दीपक बैज द्वारा इसी लोकसभा चुनाव से आरक्षण लागू करने की मांग पर कह रहे हैं कि उन्हें संवैधानिक ज्ञान का अभाव है। अब सवाल यह है कि भाजपा के नेताओं को भरपूर ज्ञान है तो 2014 में महिला आरक्षण बिल क्यों नहीं लाये? तब तो कोरोना संकट का नामोनिशान तक नहीं था।दरअसल 2014 में भाजपा परिवर्तन की लहर पर सवार होकर सत्ता में आई। 2019 में राष्ट्रवाद के नाम पर माहौल बनाया। अब 2024 के लिए महिला आरक्षण का नुस्खा सामने है। कांग्रेस का मानना है कि महिला आरक्षण तत्काल प्रभाव से लागू किया जाए। यह प्रक्रिया लम्बी खिंचेगी तो 2029 के चुनाव में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण मिल सकेगा। महिलाएं इतना इंतजार क्यों करें? जब आगामी लोकसभा चुनाव में आरक्षण लागू नहीं हो सकता तो फिर यह बिल अभी क्यों? इसे अगली सरकार पर क्यों नहीं छोड़ा गया? प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सांसद दीपक बैज चाहते हैं कि महिलाओं को उनका हक तुरंत मिलना चाहिए। इस बिल के बाद महिला आरक्षण को प्रक्रिया के नाम पर लटकाया जाना विशुद्ध राजनीति है कि बिल पास कराकर वाहवाही लूटी जाए और महिलाओं को कुछ हासिल न हो। यह महिलाओं के साथ छलावा ही है। उनका कहना है कि मोदी सरकार द्वारा पेश महिला आरक्षण बिल एक चुनावी जुमला है। कांग्रेस इस बिल की पक्षधर है यह हमारा अपना बिल है। महिला आरक्षण 2024 के चुनाव में लागू हो जाना चाहिये। यह देश की करोड़ों महिलाओं और लड़कियों की उम्मीदों के साथ बड़ा विश्वासघात है। बिल पास होने के बाद भी आरक्षण के लिये इंतजार करना पड़ेगा। मोदी सरकार द्वारा पेश विधेयक में कहा गया है कि महिला आरक्षण अगली जनगणना के प्रकाशन और उसके बाद की परिसीमन प्रक्रिया के बाद प्रभावी होगा। इस प्रावधान के बाद सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले जनगणना और परिसीमन हो पायेगा? मोदी सरकार ने 2011 के बाद 2021 में होने वाली जनगणना को अभी तक नहीं करवाया है। ऐसे में 2024 के चुनाव के पहले जनगणना होने पर बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है। यह विधेयक मोदी सरकार द्वारा सिर्फ चुनावी सनसनी के लिये लाया गया है। कांग्रेस पार्टी हमेशा से आधी आबादी को उसका पूरा अधिकार देने की पक्षधर रही है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने महिला आरक्षण बिल लाने के लिये प्रधानमंत्री मोदी से बात की थी। कांग्रेस की सरकारों ने समय-समय पर इस हेतु प्रभावी कदम भी उठाया है। सबसे पहले राजीव गांधी ने 1989 के मई महीने में पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। वह विधेयक लोकसभा में पारित हो गया था लेकिन सितंबर 1989 में राज्यसभा में पास नहीं हो सका। अप्रैल 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक को फिर से पेश किया। दोनों विधेयक पारित हुए और कानून बन गए। महिलाओं के लिए संसद और राज्यों की विधानसभाओं में एक तिहाई आरक्षण के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह संविधान संशोधन विधेयक लाए। विधेयक 9 मार्च 2010 को राज्यसभा में पारित हुआ। कांग्रेस की सरकारों के प्रयास से ही आज देश भर में पंचायतों और नगर पालिकाओं में 15 लाख से अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधि हैं। यह 40 प्रतिशत के आसपास है। कांग्रेस ने अपनी कार्यसमिति में भी महिला आरक्षण के लिये प्रस्ताव पारित किया है। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यूपीए की चेयरपर्सन रहते महिला आरक्षण लागू करने के लिये अनेकों बार ठोस पहल की, तब भाजपा विपक्ष के रूप में इस पर रोड़ा अटकाते रही है। वर्तमान में भी चुनावी हार को देखते हुये महिला आरक्षण बिल लाया गया है। अब आरक्षण लागू करने पर राजनीतिक रार ठन गई है तब सबसे बड़ा सवाल यह है कि महिलाएं इंतजार क्यों करें। केंद्र सरकार को यह ज्ञान है कि आरक्षण अभी लागू नहीं हो सकता। महिला वोटरों को रिझाने का चक्रव्यूह रचा गया है।

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