किसे नसीब होगी फलक, कौन फांकेगा खाक : बस यही चर्चा

= मतदान के बाद जीत- हार का जनता लगा रही कयास =

 = जीत पर लगाई जा रही हैं रकम की बाजियां भी =

*-अर्जुन झा-*

*जगदलपुर।* बस्तर जिले में शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव निपटने के बाद प्रत्याशियों की जीत- हार की समीक्षा शहर के चौक- चौराहों से लेकर गलियों व चौपालों तक में हो रही है। आम मतदाता अपने पसंदीदा दल की जीत का दावा कर रहे हैं। सभी प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में बंद हो चुकी है, जो तीन दिसंबर को खुल जाएगी। दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस और भाजपा के समर्थक अपने प्रत्याशी की जीत का दावा ठोक रहे हैं। वहीं जीत के लिए बाजियां भी लगाई जा रही हैं। दूसरी ओर मतदाताओं की चुप्पी ने प्रत्याशियों की बेचैनी बढ़ा दी है। जिस तरह प्रत्याशी पूरी चुनावी प्रक्रिया के दौरान बस्तर जिले से जुड़े अहम मुद्दों को लेकर खामोशी अख्तियार किए रहे, कुछ उसी अंदाज में मतदान करने के बाद अब मतदाताओं ने भी खामोशी की चादर ओढ़ ली है। सियासत से जुड़े किसी भी दल के नेताओं और कार्यकर्ताओं को मतदाता इस बात की जरा भी भनक भनक नहीं लगने दे रहे हैं कि उन्होंने किस प्रत्याशी पर भरोसा जताया है। ऐसे में प्रत्याशियों और उनके झंडाबरदारों की बेचैनी बढ़ना तो लाजिमी ही है। वैसे लोकतंत्र में ये डर अच्छा है, वरना सियासी घोड़े बेलगाम हो जाते हैं।

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*जीत के दावों को ले बढ़ रहीं तल्खियां*

जगदलपुर और बस्तर विधानसभा क्षेत्रों में मतदान होने के साथ ही जीत व हार पर मंथन का दौर शुरू हो गया है। इस बीच जीत के दावों को लेकर लोगों के बीच आपस में तकरार बढ़ गई है। बात बात में लोगों के सुर तेज हो जाते हैं। वहीं सामने वाला अपनी जिद पर अड़ा रहता है। नतीजतन जीत के दावे को लेकर आम लोगों के बीच तल्खियां बढ़ गई हैं। इस विधानसभा चुनाव ने लोगों के बीच की दूरियां बढ़ा दी है। क्योंकि नेता तो चुनावी जीत व हार के बाद कोई मजे करेगा, तो कोई मातम मनाएगा, लेकिन लोगों में हार जीत को लेकर बढ़ रहा मन मुटाव शायद जल्द दूर नहीं हो पाएगा। गांवों से लेकर शहर और कस्बों तक में अमूमन ऐसी ही स्थिति है। सभी जगहों पर जीत किसकी होगी वाली बहस विवाद का रूप ले रही है। समर्थक अपने मोबाइल से वोटों का आंकड़ा संग्रह कर रहे हैं। वहीं राजनीतिक पंडित गुणा -भाग निकाल रहे हैं कि जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा?

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*स्थानीय मुद्दों पर छाई रही खामोशी*

दोनों विधानसभा क्षेत्रों में मतदान के बाद जहां एक ओर जीत- हार पर सर्वत्र चर्चा चल रही है, वहीं जन समस्याओं पर प्रत्याशियों की चुप्पी ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। आमजन इससे आहत भी हैं। लोगों का कहना है कि किसी भी स्थानीय बड़े मुद्दे पर प्रत्याशियों ने चुनाव के दौरान चर्चा नहीं की। एक तरफ सत्ताधारी दल के समर्थक विकास की बात करते हैं, तो विपक्षी इसे ठीक से मतदाताओं को समझा नहीं पाए। जिसका लाभ सत्ताधारी दल को मिलने के हल्के संकेत मिल रहे हैं। अब सवाल तो भविष्य के गर्भ में है कि जनता ने किसके पक्ष में फैसला सुनाया है?

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