क्या जगदलपुर में आने वाला है चुनावी भूकंप का ऑफ्टर शॉक.
0 नगर निगम पर भाजपा की निगाह, बढ़ सकती है महापौर की दिक्कत
*(अर्जुन झा)*
जगदलपुर। छत्तीसगढ़ की सियासी हवा का रुख बदलते ही बस्तर में भी समीकरण बदल गए हैं। बस्तर संभाग की सभी बारह सीटों पर जमे कांग्रेस के पांव उखड़ गए। केवल बस्तर, कोंटा और बीजापुर सीट ही कांग्रेस बचा पाई। सबसे चौंकाने वाला नतीजा बस्तर लोकसभा की चित्रकोट सीट का रहा। बस्तर सांसद और छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भीतरघातियों की वजह से अप्रत्याशित रूप से हार गए। संभाग की इकलौती सामान्य सीट जगदलपुर में भी कांग्रेस हार गई। जगदलपुर सीट हारने के बाद नगरनिगम की राजनीति में जबरदस्त उठापटक की आशंकाएं उपज गई हैं। महापौर सफीरा साहू की मुश्किलें आने वाले समय में बढ़ सकती हैं। जगदलपुर नगर निगम पर भाजपा की निगाह गड़ गई है। राजधानी रायपुर, राजनांदगांव, कोरबा नगर निगम में सत्ता परिवर्तन के लिए भाजपा कमर कस चुकी है। इसके साथ ही जगदलपुर नगर निगम में भी भाजपा कब्जा करने की कोशिश से पीछे नहीं हटेगी। भाजपा के बस्तर संभाग प्रभारी सांसद संतोष पांडेय ने जो व्यूहरचना की, वह बस्तर में भाजपा के लिए वरदान साबित हो चुकी है। सांसद संतोष पांडेय के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र राजनांदगांव में भाजपा नगर निगम की सत्ता पलटने बेताब है तो उनके प्रभार वाले बस्तर की जगदलपुर नगर निगम के भाजपा पार्षदों में भी कुछ कर गुजरने की इच्छा उलांचें मार रही है। क्योंकि जगदलपुर नगर निगम की कांग्रेसी सत्ता के दो अहम किरदारों के समर्थक पार्षद अब पहले जैसी इच्छाशक्ति शायद प्रदर्शित न कर पाएं। वजह यह है कि 26 हजार से अधिक मतों से जीतने के बावजूद जगदलपुर विधायक रेखचंद जैन की टिकट काट दी गई। पूर्व महापौर जतिन जायसवाल कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा चुनाव हार गए तो इससे भी नगर निगम की कांग्रेसी राजनीति का कुछ न कुछ योगदान माना जा सकता है। जगदलपुर नगर निगम में कांग्रेस के 29 पार्षद हैं और भाजपा के 19 पार्षद हैं। 48 पार्षदों वाली नगर निगम में जगदलपुर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राजीव शर्मा की समर्थक मानी जाने वाली सफीरा को महापौर बनाया गया जबकि सांसद दीपक बैज की समर्थक मानी जाने वाली कविता साहू को सभापति बनाया गया है। अब कांग्रेस पार्षद दल में खींचतान हो सकती है। नियम के मुताबिक एक तिहाई पार्षद अविश्वास प्रस्ताव के लिए प्रस्ताव दे सकते हैं। जब ऐसे संख्या बल के साथ अविश्वास प्रस्ताव दिया जाएगा तो जिला कलेक्टर उसे स्वीकार कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में नगर निगम का विशेष सत्र बुलाकर कलेक्टर शक्ति परीक्षण कराएंगे। प्रस्ताव पारित होने के लिए दो तिहाई बहुमत होना चाहिए। यदि प्रस्ताव गिर गया तो एक साल तक दोबारा अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता। तब उस स्थिति में सफीरा अपना कार्यकाल पूरा कर सकती हैं लेकिन भाजपा ऐसे प्रस्ताव के जरिए नगर निगम की राजनीति में कांग्रेस की मौजूदा हालत से वाकिफ हो सकती है। यदि कांग्रेस पार्षद दल में अंदरूनी कलह है या विधानसभा चुनाव के परिणाम को लेकर शीत युद्ध चल रहा है तो भाजपा का भला भी हो सकता है। यदि ऐसा हुआ तो यह विधानसभा चुनाव के भूकंप का ऑफ्टर शॉक होगा।