रिजर्व फारेस्ट में संचालित हैं खदानें और क्रशर प्लांट…!
खदानों में उड़ रहीं एनजीटी के आदेशों की धज्जियां == सरेआम पहुंचाया जा रहा पर्यावरण को भारी नुकसान == ध्वनि और वायु प्रदूषण से ग्रामीणों का जीना दुश्वार =*-अर्जुन झा-*
जगदलपुर।* रिजर्व फारेस्ट में अवैध रूप से पत्थर खदान और क्रशर प्लांट संचालित किए जा रहे हैं। इससे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि आसपास की बस्तियों में ध्वनि एवं वायु प्रदूषण भी फैल रहा है। यहां तक कि प्रदूषण की चपेट में स्कूल भी आ चुका है। डर के मारे पालकों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया है। मामला ग्राम कड़माका है। बस्तर जिले के विकासखंड दरभा के ग्राम कड़मा के ग्रामीणों का प्रदूषण के कारण गांव में रहना दूभर हो गया है। कड़मा गांव के पास रिजर्व फॉरेस्ट के अंदर खदान संचालित हैं। संरक्षित भूमि पर माइनिंग की अनुमति दे दी गई है। खदान मालिकों द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम का पालन नहीं किया जा रहा है और वहां पर लगे नीलगिरी के पेड़ों को नुकसान पहुंचाया गया है। वेस्ट मैनेजमेंट सही से न होने के कारण सारे सॉलिड वेस्टेज को संरक्षित वन में डंप कर पर्यावरण को क्षति पहुंचाई जा रही है। वहां के ग्रामीणों का कहना है कि खदानों और क्रशर प्लांटों के प्रदूषण के कारण घरों की दीवारों, छत, पर, आंगन में और कमरों के भीतर धूल की मोटी परत जम जाती है। कुंए और दीगर जलस्त्रोत भी प्रदूषण से अछूते नहीं रह गए हैं। ग्रामीणों को पीने और भोजन बनाने के लिए साफ पानी नहीं मिल रहा है। रोड पर दिन रात भारी ट्रकों की आवाजाही लगी रहती है। प्रदूषण और ट्रकों की वजह से ग्रामीण अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं और और न ही खुद रोजी मजदूरी के लिए कहीं जा पाते हैं। बच्चों का भविष्य तो खतरे में है ही, बच्चों की जान पर भी खतरा बना रहता है। खदानों तक जाने वाले ट्रकों के लिए एक ही रास्ता है, जो गांव के बीच से गुजरा हुआ है। ग्रामीणों की बस्ती होने के बावजूद पटवारी और तहसीलदार ने गलत सर्वे रिपोर्ट देकर रिहायशी क्षेत्र और संरक्षित वन क्षेत्र में खदानों की लीज दिलाने में मदद कीगई है। खदान संचालकों द्वारा संरक्षित वन क्षेत्र की फेंसिंग को तोड़ दिया गया है। संरक्षित वन क्षेत्र की फेंसिंग के सारे तारों को तोड़कर ट्रकों को वहां ले जाया जा रहा है। ट्रकों की आवाजाही से पेड़ पौधों को नुकसान पहुंच रहा है। और ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण के कारण गांव के लोगों को आंख, कान, नाक से संबंधित तथा सांस, दमा व फेफड़े से जुड़ी बीमारियां हो रही हैं। लोगों का कहना है कि यहां की सभी खदानों में पर्यावरण के नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। जिसके कारण उनका आए दिन तरह तरह की समस्या पैदा हो रही है।
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काम कर रहे हैं बाल मजदूर*
जब हमने खदान निरीक्षण के लिए जाने की अनुमति चाही, तो खदान मालिकों ने मना कर दिया। उनका कहना था कि कलेक्टर के आदेश के बिना आप खदान विजीट नहीं कर सकते। कुछ खदान संचालकों ने हमें अनुमति दी। अंदर जांच में पाया गया कि बाल मजदूरों से 100 रू. की दिहाड़ी पर दिनभर पत्थर की लोडिंग अनलोडिंग कराई जाती है। जिसका फुटेज हमारे पास है। खदान मालिक से संपर्क कर इस बारे में जानकारी चाही गई, तो उन्होंने कहा कि उनकी खदान में कोई बाल श्रमिक नहीं है। जो मजदूरी शासन के नियम के हिसाब से दी जाती है। वहीं वहां काम करने वाले बाल श्रमिकों से ने बताया कि 110 रुपए प्रतिदिन की रोजी के हिसाब से उन्हें मजदूरी दी जाती है और काम दिनभर कराया जाता है। नाबालिग की उम्र 17 साल है जो कि पिछले 2 साल से वहां पर कार्यरत हैं।एक और व्यक्ति जिसका पैर टूटा हुआ था वह भी वहां पर काम करते पाया गया। वहां पर जितने भी मजदूर काम करते हैं, उनको सेफ्टी नॉर्म्स के हिसाब से जूते हेलमेट, दस्ताने मास्क आदि भी नहीं दिए जाते हैं। इन खदानों में मजदूर खतरे के बीच काम करते हैं। इस वजह से कभी भी दुर्घटना हो सकती है। पूर्व में कई बार दुर्घटनाएं हो चुकी हैं इन खदानों में। उसके बावजूद माइनिंग ऑफिसर निरीक्षण कर चले जाते हैं और फाइलों में ओके, आल इस वेल दिखा देते हैं। जबकि ग्राउंड जमीनी तौर पर सारी कहानी उलट है। इन सब का जिम्मेदार कौन है?इसकी पड़ताल जारी रहेगी। देखते हैं सरकार इस पर क्या एक्शन लेती है और एनजीटी की गाइड लाईन का कितना पालन होता है और जिला एनवायरमेंट इंपैक्ट अथॉरिटी एसेसमेंट अथॉरिटी के नियमों का पालन हो रहा है कि नहीं यह जांच का विषय है। साथ ही स्टेट एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी के नियमों का पालन कितना किया जा रहा है ध्वनि प्रदूषण, वायु, प्रदूषण और पर्यावरण प्रदूषण के नियमों के पालन की जांच करने वाले अधिकारी से पूरी डिटेल लेकर अगले अंक में बताएंगे कि क्या चल रहा है?*
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*एनजीटी में जाएगा मामला*
ग्रामीण कहते हैं कि कलेक्टर के संज्ञान में इस ज्वलंत मुद्दे को लाकर कार्रवाई करने हेतु निवेदन और माइनिंग विभाग के अधिकारियों को तत्काल जांच एवं जो भी खामियां पाई जाती हैं उसके आधार पर उचित कार्रवाई करते हुए माईनिंग लीज तत्काल रद्द कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। अधिकारी खदान मालिकों से नियमों का पालन नहीं करा पाएंगे, तो ग्रामीण और स्वयंसेवी संगठन के लोग नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में अपील करने की सोच रहे हैं। अगर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) में मामला चला गया, तो खनिज विभाग, वन विभाग, प्रशासन व पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण मंडल के कई अधिकारियों पर गाज गिरना तय है।