उलनार के ग्रामीणों की आस्था पर भारी पड़ रहा है भ्रष्टाचार

= आठ माह बाद भी पूरा नहीं हो पाया मातागुड़ी निर्माण =

*-अर्जुन झा-*

*बकावंड।* बस्तर के आदिवासियों को गांवों में स्थापित मातागुड़ी एवं डेवगुड़ियों के प्रति अटूट आस्था रहती है। वे इन देव स्थानों में पूजा अर्चना करके ही अपने हर शुभ कार्यों की शुरुआत करते हैं। मगर ग्राम पंचायत के कारिंदे ग्रामीणों की आस्था पर आघात पहुंचाने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसा ही कुछ ग्राम उलनार में भी हो रहा है, जहां आठ माह से मातागुड़ी का निर्माण पूरा नहीं हो पाया है। इसे लेकर ग्रामीणों में आक्रोश है।

          जनपद पंचायत बकावंड की ग्राम पंचायत उलनार की पुरानी मातागुड़ी जीर्ण शीर्ण हो चली थी। ग्रामीण नई मातागुड़ी बनवाने की मांग लंबे समय से करते आ रहे थे। ग्रामीणों की आस्था और भावनाओं को देखते हुए 8- 9 माह पूर्व जिला खनिज निधि न्यास ट्रस्ट (डीएमएफटी) से उलनार में नई मातागुड़ी के निर्माण के लिए पांच लाख रुपए स्वीकृत किए गए थे। ग्राम सरपंच और पंचायत सचिव ने निर्माण कार्य शुरू करा भी दिया, लेकिन अधूरा काम कराकर निर्माण बीच में ही रोक दिया गया। आठ माह बीत जाने के बाद भी निर्माण अधूरा पड़ा है। निर्माण के नाम पर अब तक ढाई फीट ऊंची प्लींथ के साथ पिलरों और ऊपर छत के लिए दीवार भर खड़ी कर दी गई है। मातागुड़ी भवन के चारों ओर दीवार निर्माण और छत ढलाई का काम अब तक नहीं कराया गया है। नतीजतन ग्रामीण वहां धर्मलाभ नहीं ले पा रहे हैं।पंचायत सचिव और सरपंच ग्रामीणों की आस्था से खिलवाड़ करने पर तुल गए हैं।  उलनार के आदिवासी समुदाय तथा माता पर आस्था रखने वाले अन्य जाति समुदायों के लोगों में पंचायत सचिव की मनमानी को लेकर भारी नाराजगी देखी जा रही है। उलनार के सारे नागरिक मातागुड़ी को दशकों से पूजते आ रहे हैं। इस ग्राम देवी पर यहां के लोगों में गहरी आस्था है। साल 2022 के अंत में मातागुड़ी निर्माण की मांग  ग्रामीणों द्वारा की गई थी। तब जाकर राशि स्वीकृत हुई थी।

*बॉक्स*

*…तो दो माह में ही गुड़ी बन जाती*

स्वीकृत पूरी राशि खाते से निकाल लेने के बाद भी थोड़ा बहुत काम कराया गया। इसके बाद काम को अधूरा छोड़ दिया गया है। आठ माह बीत जाने के बाद भी मातागुड़ी का निर्माण पूरा नहीं हो पाया है। वहीं पंचायत आचार संहिता का रोना रोते हुए बहाना बना रहे हैं कि आदर्श आचार संहिता लागू हो जाने के कारण काम बीच में रोकना पड़ा है।दूसरी ओर ग्रामीण मातागुड़ी के लिए स्वीकृत 5 लाख रु. की अफरा तफरी की आशंका जता रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि मातागुड़ी निर्माण के लिए स्वीकृत राशि अगर स्थानीय निवासियों की सार्वजनिक समिति बनाकर समिति को दी गई होती, तो इतनी बड़ी रकम से भव्य मातागुड़ी का निर्माण दो माह के भीतर ही पूर्ण कर लिया गया होता। उल्लेखनीय है कि उलनार में आदिवासी समुदाय और दीगर समुदायों के लोग हर सार्वजनिक एवं पारिवारिक कार्यों की शुरुआत मातागुड़ी में पूजा अर्चना कर व उनसे आशीर्वाद लेकर ही करते हैं। ऐसे में मातागुड़ी का निर्माण अधूरा रहने से यहां के लोगों की आस्था आहत हो रही है।

*वर्सन*

*आचार संहिता से रुका काम*

निर्माण जारी रहने के दौरान चुनाव आचार संहिता लग गई थी। इस कारण मातागुड़ी का काम रोकना पड़ गया था। कार्य अब जल्द शुरू करा देंगे।

         *-राजेश कश्यप,*

        सचिव, ग्राम पंचायत उलनार

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