जगदलपुर के लोगों को दीवाना बना दिया है इस ‘जुगनी’ ने…!
= बच्चे, बूढ़े, जवान सभी आशिक बन गए हैं बस्तर की जुगनी के =
*-अर्जुन झा-*
*जगदलपुर।* ‘हो…मेरी माही दा रंग सुनहरा लगे, ये चांद तेरा चेहरा लगे…. आंखों के रस्ते दिल में उतरके ले गई मेरी जान… जुगनी, जुगनी, जुगनी…। ‘ बॉबी देओल और रानी मुखर्जी अभिनीत हिंदी फीचर फिल्म बादल का यह गाना जितना मनभावन है, उतनी ही मनभावन बस्तर की जुगनी भी है। बस्तर की यह जुगनी हर जगह जलवा बिखेर रही है। हर शख्स दूसरे शख्स से पूछता नजर आता है कि तुमने जुगनी देखी क्या? कोई कहता है नहीं भाई, अभी तक तो नहीं। वहीं कोई शख्स तपाक से जवाब देता है कि देखी ही नहीं भाई, मैंने तो जुगनी को चख भी डाला है। क्या गजब का जायका है भाई जुगनी में। मैं तो दीवाना हो गया हूं, मुरीद और आशिक बन गया हूं अपनी इस जुगनी का।
जगदलपुर शहर और आसपास के गांवों में हर तरफ सिर्फ जुगनी की ही चर्चा है। क्या युवा, क्या बच्चे, क्या बूढ़े सभी पर जुगनी की आशिकी का भूत सा सवार हो गया है। जगदलपुर में नई – नई आई इस जुगनी ने ऐसा हंगामा मचा रखा है कि पूछो मत। उसके चाहने वालों की फेहरिश्त दिन ब दिन लंबी होती जा रही है। अमूमन हर किचन में जुगनी की धमक सुनाई देने लगी है। महिलाएं भी जुगनी को अपनाने में जरा भी गुरेज नहीं कर रही हैं। पति जब जुगनी को साथ लेकर घर पहुंचता है, तब पत्नी ताने मारते हुए कहती है – ले आए मेरी सौतन को! चलो कोई बात नहीं आज आपके लिए जुगनी को समर्पित कर देती हूं। चौंकिए मत जनाब ये जुगनी कोई हुस्न की मलिका नहीं है, मगर किसी हुस्न परी से कम भी नहीं है। यह जगदलपुर के बाजार में आई नई नवेली एक सब्जी है। कद्दू प्रजाति की यह हाईब्रिड सब्जी है। उसका रंग बिल्कुल माही दा रंग जैसा सुनहरा है और चांद सा खूबसूरत भी है वह। कद्दू परिवार की जुगनी गोल मटोल नहीं, बल्कि छरहरी है। इसकी खेती परचमपाल स्थित एक फार्म हाउस में की जा रही है।इन दिनों पीला और लंबा यह कुम्हड़ा बाजार में बिकने आ रहा है। आम कुम्हड़े की अपेक्षा जुगनी जरूर थोड़ी महंगी है, मगर इसका स्वाद लाजवाब होता है। इसमें पौष्टिक तत्वों की भरमार रहती है। कुम्हड़े की तरह यह बादी तासीर वाली नहीं होती। बाजार में अभी जुगनी 40 रू. किलो के भाव से बिक रही है। जुगनी की अच्छी डिमांड भी हो रही है। पहली ही नजर में लोग इसे पसंद कर लेते हैं और खरीदकर घर ले जाते हैं।