महाकुंभ 2025 : तीर्थराज की रेत पर संतों की आकाशगंगा… और समुद्र मंथन वाले सतयुग का डिजिटल अवतार
प्रयागराज/ रायबरेली के एक गांव से आई महिला अपनी बहन को वीडियो कॉल पर संगम दिखा रही है। कहती है – ये देखो गंगा मईया, जल्दी से जय गंगा मईया बोलो और वहीं घर में डुबकी मार लो। बहन वहीं आंखें मूंदे मां गंगा को प्रणाम करती है और यहां ये महिला संगम किनारे की रेती को माथे से लगा लेती है। वो रेती जिस पर 4,000 हेक्टेयर में महाकुंभ नगर बसाया गया है। बारिशों वाली गंगा सिमट चुकी है। किनारे पर पूरे नगर की बसाहट हो चुकी है। 600 किमी लंबी चकर्डप्लेट की सड़कें हैं। इस छोर को उस छोर से मिलाने वाले 30 पैंटून पुल हैं। आसरा देने लाखों तंबू मजबूती से खड़े हैं। 13 किमी इलाके के 25 सेक्टर में एआई ऑपरेटेड खंभे और चैट बोट्स के जरिये एक महीने के लिए मानो समुद्र मंथन वाला सतयुग तीर्थराज के डिजिटल युग में उतर आया है। अंधेरा होते ही रेत पर जब हजारों खंभों पर खड़ी रोशनी गंगा में अपना अक्स देखती है तो ये इलाका आसमां में बुनीं हुई हजारों आकाशगंगाओं सा नजर आता है। अखाड़ों से लाउडस्पीकर पर आवाज आ रही है। श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि…। किसी शिविर में कथा बांची जा रही है। कहीं अर्जुन की कहानी सुना रहे हैं, कोई गीता का सार पढ़ रहा है। और इसी बीच संत करगिल युद्ध और सैनिकों का भी जिक्र कर देते हैं। ये संतों का उत्सव है। अगले एक महीने यही उनका ठौर है। चारों ओर संत ही नजर आ रहे हैं। कोई ब्रह्मचारी, कोई कोतवाल, कोई पुजारी, महंत, श्रीमहंत तो कोई पदाधिकारी और महामंडलेश्वर। कोई भगवा, कोई गेरुआ, कोई सफेद तो कोई काली पोषाक पहने। कोई गुरु के आगे दंडवत है, कोई साष्टांग है, कोई टखने तक झुकता है, तो कोई सिर्फ गुरु के पैरों के आगे की जमीन छू लेता है। किसी की आंखों में आंसू हैं, तो कोई आंखें भींचे मंत्र बुदबुदा रहा है।
तंबू लग चुके हैं, बचे खुचे काम को जल्दी पूरा कर देने की जल्दबाजी है। चोगा पहने साधु अपना टेंट खुद लगा रहे हैं। नागा अलाव जलाने लकड़ियां तुलवाकर जुटा रहे हैं। कोई राशन तो कोई गाड़ियों की गिनती कर रहा है। बेटी के ब्याह सा नजारा है। पेशवाई का स्वागत भी बेटी की बरात जैसा हो रहा है। छावनी प्रवेश होते ही पहले से मौजूद अखाड़ों के संत अपने द्वार पर पेशवाई का घराती बन इंतजार कर रहे हैं। पास में गेंदे के फूल की कई दर्जन मालाएं हैं। और परात में मिसरी, सौंफ, लौंग-इलायची रखी है। पेशवाई पहुंचती है तो उसमें मौजूद बैंडवाले इन साधुओं के ठीक सामने रुक जाते हैं। अपनी खास धुन सुनाते हैं, ताकि घराती उन्हें थोड़े ज्यादा पैसे न्यौछावर दें। इस पेशवाई में शामिल होने के लिए बकायदा इन्विटेशन कार्ड बांटे गए हैं। भजन, कथा, पेशवाई जैसे कार्यक्रमों के कार्ड बांटने गए संत अपने साथ कैमरा टीम लेकर चल रहे हैं। वो दूसरे अखाड़ों के पदाधिकारियों को बुलावे का कार्ड देते हैं और कैमरा टीम इसे कैप्चर कर लेती है। वैसे हर पल को साधु संत अपने फोन में भी कैप्चर किए ले रहे हैं। वो चलते चलते वीडियो बना रहे हैं। मेले की। पेशवाई की। अखाड़ों की।
सबसे बड़ी कनात के नीचे जूना अखाड़े के एक संत बैठे हैं। कौशांबी से आया एक परिवार, मां-पिता-बेटा-भतीजा, गुरुग्राम में सीएफए कर रहा एक युवक और धोती के साथ ऊंचे मटमैले मौजे-जूते पहने कुछ बुजुर्ग भी वहां आकर संत को घेरकर बैठ जाते हैं। संन्यास क्या है। परिवार और जिम्मेदारियां बेहतर हैं या वैराग्य। तमाम सवालों पर सत्संग होने लगता है। हर बार की तरह इस बार भी कुंभ में कई ब्रह्मचारी साधु बन जाएंगे, कई महामंडलेश्वर चुने जाएंगे और कई पहली बार संन्यासियों वाला संस्कार पाएंगे। निरंजनी अखाड़े की एक-एक मढ़ी पर जाकर 55 साल का एक आदमी हर साधु को …नमो नारायण महाराज जी कह रहा है। वो कहता है, इस बार गुरुमहाराज ने कहा है कि वो मुझे भी नागा बना लेंगे। साधु बाबा उसे कहते हैं, भक्ति करो, तपस्या करो, चिंता ना करो। हर अखाड़े में अलग रौनक है।
पास वाले अग्नि अखाड़े ने सबसे पहले कुंभ नगरी में अन्नक्षेत्र शुरु किया था। यहां भगवा और सफेद रंग के शिविर में लंबी सी पंगत लगी है। हर दिन इस अन्नक्षेत्र में 1000 लोग खाना खाते हैं। खाना परोसने वाले आवाज देते हैं – सब्जी राम… रोटी राम.. दाल राम…। पंगत में साथ बैठे नागा, साधु, मजदूर, श्रद्धालु और कर्मचारी अपनी अपनी थाली में परोसने का इशारा करते हैं। पंगत साथ बैठती है और फिर साथ भोजन खत्म कर उठती है। राशन में क्या कब कितना चाहिए। कितनी गाड़ियों के लिए सिक्योरिटी पास चाहिए। कितनी टायलेट और टेंट और लगेंगे, हिसाब किताब पूरे इलाके में दौड़ लगा रहा है। पुलिस वाले सिक्योरिटी से जुड़े कागजों की अनगिनत कॉपियां समेटे यहां से वहां दौड़ रहे हैं।
बत्ती वाली गाड़ियों में सिर्फ पुलिस नहीं संत भी घूम रहे हैं। ये सनातन का लग्जरी एंगल है। कुंभ नगरी में बत्ती और हूटर वाली सबसे ज्यादा गाड़ियां संत, महंत, महामंडलेश्वरों की ही है। आगे फॉर्चूनर पर महामंडलेश्वर जा रहे हैं। पीछे कम से कम 8 गाड़ियां और हैं। ऐश्वर्य और वैभव आभूषणों के हवाले कंठ और ऊंगलियों में कई तौले सोने में गढ़ा हुआ है।
मती पत्थर और रूद्राक्ष माथे तक पर सजे हैं। कहीं सर्वसुविधायुक्त कॉटेज बने हैं कहीं इकोफ्रेंडली कुटिया है। इनमें देसी सजावट से लेकर विदेशी कमोड तक असाइशों का हर सामान है। वहीं कई कुटिया बमुश्किल घास फूस बांस और मोटे कपड़े से तैयार हुई है। कुंभ नगरी की अखाड़ा लेन में कुछ जगह पीपली लाइव सा नजारा भी है। टीवी चैनल और यू ट्यूबर्स के कैमरे उन जगहों पर ज्यादा है जहां हठ योगी मौजूद हैं। इनमें एक पैर पर खड़े बाबा, एक हाथ हमेशा खड़ा रखने वाले बाबा, सबसे लंबी जटा वाले बाबा सबसे ज्यादा फेमस हैं। लोग उन्हें ढूंढ़-ढूंढ़कर देखने आ रहे हैं। वो इन्हें देखते हैं, सेल्फी लेते हैं, हाथ जोड़ते हैं, फिर सामर्थ अनुसार 10-20-100-50 का नोट उन्हें चढ़ाकर, आशीर्वाद लेकर आगे बढ़ जाते हैं।
इन लोगों में वो कल्पवासी शामिल हैं जो महीनेभर अपनी गृहस्थी लेकर कुंभ आए हैं। छोटे लोडिंग रिक्शा में लोटा, बाल्टी, गद्दे, रजाई, गैस चूल्हे से लेकर नमक, चावल और चायपत्ती तक साथ लाए हैं। कुंभ मेला मतलब सिर्फ 13 अखाड़े नहीं, कल्पवास भी है। 13 अखाड़ों के अलावा कुंभ मेले में दंडी बाड़ा, आचार्य बाड़ा, खाकचौक या खालसा, तीर्थपुरोहित नगर और कल्पवासियों का नगर भी बसता है।
यहां हरियाणा से आए जंगम साधु हर अखाड़े, हर मढ़ी में जाकर अपनी कथा गा रहे हैं। हाथ में ढोल, ढपली, घंटी और मंजीरे हैं। सिर पर मोटी कलगी बंधी है। वो हर अखाड़े में जाकर उस अखाड़े का नाम लेकर भजन सुनाते हैं। भजन में शिव पार्वती का संवाद भी है, राम का नाम भी और ये दुआ भी कि जिसकी देहरी पर खड़े हैं उस अखाड़े में धर्म बढ़े। जंगम गाते हैं… वो राजा की राजदुलारी, मैं सिरफ लंगोटे वाला हूं…। साधु खुश होकर उन्हें बख्शीश देते हैं।
शिविर में पहले स्नान की तैयारियां चल रही हैं। रथ तैयार किए जा रहे हैं। बैंड बाजे की बुकिंग हो रही है। आचार्य, महामंडलेश्वर और पदाधिकारी बैठकें कर रहे हैं। लिफाफे तैयार हो रहे हैं और रणनीति भी। अखाड़े के बीचों बीच कई किमी दूर से नजर आनेवाला लाल-भगवा धर्म ध्वजा लहरा रहा है। एक पेड़ के तने से बने इस धर्म ध्वजा को खड़ा करने चार क्रैन का सहारा लेना पड़ता है। उस तने पर गेरुआ पुता है। जिस आंगन में ध्वज लगा है वहीं मंदिर है। अखाड़े के देवता-गुरु इसी मंदिर में हैं। मंदिर के बाहर रक्षक तैनात हैं। इन्हें कोतवाल कहा जाता है। इनके हाथ में चांदी का दंड है। दाढ़ी मूछों वाला एक कोतवाल मंदिर की चौखट पर जाकर खड़ा होता है। फिर तेज आवाज में कहता है – दशनाम गुरु सुनना, आनंद अखाड़े से गिरिजानंद सरस्वति आए। गुरु महाराज को पांच हजार रुपये भेंट किए। यहां खबर और अपडेट देने की यही परंपरा है।
हर अखाड़े के दोनों गेट पर सीआरपीएफ के जवान तैनात हैं। वो आने-जाने वालों पर नजर रखते हैं। कंपकंपाती ठंड है। जगह-जगह अलाव जल रहे हैं। सैनिक और साधु साथ में हाथ ताप रहे हैं। पुलिस कांस्टेबल नागेंद्र कुमार बांदा में पोस्टेड हैं। वो कहते हैं ये चौथी बार उनकी कुंभ में ड्यूटी लगी है। चार साल बाद रिटायरमेंट है इसलिए इस बार वो जिद करके अपनी ड्यूटी कुंभ में लगवाए हैं।
संत-साधुओं की जनरेशन नेक्स्ट
अब लगभग हर साधू के पास फोन है। हाथ में रूद्राक्ष की माला के अलावा स्मार्ट वॉच है। कुटिया में एसी, ब्लोअर है। कॉटेज में मॉड्यूलर किचन हैं। ये संत-साधुओं की जनरेशन नेक्स्ट है।
कुछ युवा संत बात करते हैं…
बताओ सनातन सबसे पुराना होकर भी सबसे ज्यादा क्यों नहीं बढ़ा। वहां खड़ा उसका साथी संत जवाब देता है – क्योंकि उनके धर्म में सुबह उठकर नहाना नहीं पड़ता, बिना नहाए रह सकते हैं।